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पंचास्तिकायसंग्रह
सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च । विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुज्जदि असदि सब्भावे ।। ३७ ।।
शाश्वतमथोच्छेदो भव्यमभव्यं च शून्यमितरच्च । विज्ञानमविज्ञानं नापि युज्यते असति सद्भावे ।। ३७।।
[ भगवान श्री कुन्दकुन्द
अत्र जीवाभावो मुक्तिरिति निरस्तम्।
द्रव्यं द्रव्यतया शाश्वतमिति, नित्ये द्रव्ये पर्यायाणां प्रतिसमयमुच्छेद इति, द्रव्यस्य सर्वदा अभूतपर्यायैः भाव्यमिति, द्रव्यस्य सर्वदा भूतपर्यायैरभाव्यमिति, द्रव्यमन्यद्रव्यैः सदा शून्यमिति, द्रव्यं स्वद्रव्येण सदाऽशून्यमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनंतं ज्ञानं क्वचित्सांतं ज्ञानमिति क्वचिज्जीवद्रव्येऽनंतं क्वचित्सांतमज्ञानमिति एतदन्यथा
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गाथा ३७
अन्वयार्थ:- [ सद्भावे असति ] यदि [ मोक्षमें जीवका ] सद्भाव न हो तो [ शाश्वतम् ] शाश्वत, [ अथ उच्छेदः] नाशवंत, [ भव्यम् ] भव्य [ - होनेयोग्य ], [ अभव्यम् च ] अभव्य [ – न होनेयोग्य ], [ शून्यम् ] शून्य, [ इतरत् च ] अशून्य, [विज्ञानम् ] विज्ञान और [ अविज्ञानम् ] अविज्ञान [न अपि युज्यते ] [ जीवद्रव्यमें ] घटित नहीं हो सकते । [ इसलिये मोक्षमें जीवका सद्भाव है ही। ]
टीका:- यहाँ, — जीवका अभाव सो मुक्ति है' इस बातका खण्डन किया है।
[१] द्रव्य द्रव्यरूपसे शाश्वत है, [२] नित्य द्रव्यमें पर्यायोंका प्रति समय नाश होता है, [३] द्रव्य सर्वदा अभूत पर्यायरूसपे भाव्य [ - होनेयोग्य, परिणमित होनेयोग्य ] है, [४] द्रव्य सर्वदा भूत पर्यायरूपसे अभाव्य [ – न होनेयोग्य ] है, [५] द्रव्य अन्य द्रव्यों से सदा शून्य है, [६] द्रव्य स्वद्रव्यसे सदा अशून्य है, [७] "कसी जीवद्रव्यमें अनन्त ज्ञान और किसीमें सान्त ज्ञान है, [८] किसी
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१। जिसे सम्यक्त्वसे च्युत नहीं होना है ऐसे सम्यक्त्वी जीवको अनन्त ज्ञान है और जिसे सम्यक्त्वसे च्युत होना है ऐसे सम्यक्त्वी जीवके सान्त ज्ञान है।
२। अभव्य जीवको अनन्त अज्ञान है और जिसे किसी काल भी ज्ञान होता है ऐसे अज्ञानी भव्य जीवको सान्त अज्ञान है।
सद्भाव जो नहि होय तो ध्रुव, नाश, भव्य, अभव्य ने
विज्ञान, अणविज्ञान, शून्य, अशून्य से कई नव घटे । ३७ ।
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