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षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
अत्रासत्प्रादुर्भावत्वमुत्पादस्य सदुच्छेदत्वं विगमस्य निषिद्धम्।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
[ ३५
भावस्य सतो हि द्रव्यस्य न द्रव्यत्वेन विनाशः, अभावस्यासतोऽन्यद्रव्यस्य न द्रव्यत्वेनोत्पादः। किन्तु भावाः सन्ति द्रव्याणि सदुच्छेदमसदुत्पादं चान्तरेणैव गुणपर्यायेषु विनाशमुत्पादं चारभन्ते। यथा हि घृतोत्पतौ गोरसस्य सतो न विनाशः न चापि गोरसव्यतिरिक्तस्यार्थान्तरस्यासतः उत्पाद: किन्तु गोरसस्यैव सदुच्छेदमसदुत्पादं चानुपलभ-मानस्य स्पर्शरसगन्धवर्णादिषु परिणामिषु गुणेषु पूर्वावस्थया विनश्यत्सूत्तरावस्थया प्रादर्भवत्सु नश्यति च नवनीतपर्यायो घतृपर्याय उत्पद्यते, सर्वभावानामपीति।। १५ ।।
तथा
टीका:- यहाँ उत्पादमें असत्के प्रादुर्भावका और व्ययमें सत्के विनाशका निषेध किया है [अर्थात् उत्पाद होनेसे कहीं असत्की उत्पत्ति नहीं होती और व्यय होनेसे कहीं सत्का विनाश नहीं होता -- ऐसा इस गाथामें कहा है ] ।
भावका–सत् द्रव्यका - द्रव्यरूपसे विनाश नहीं है, अभावका -असत् अन्यद्रव्यका - द्रव्यरूपसे उत्पाद नहीं है; परन्तु भाव - सत् द्रव्यों, सत्के विनाश और असत्के उत्पाद बिना ही, गुणपर्यायोंमें विनाश और उत्पाद करते हैं। जिसप्रकार घीकी उत्पत्तिमें गोरसका - सत्का - विनाश नहीं है तथा गोरससे भिन्न पदार्थान्तरका -असत्का - उत्पाद नहीं है, किन्तु गोरसको ही, सत्का विनाश और असत्का उत्पाद किये बिना ही, पूर्व अवस्थासे विनाश प्राप्त होने वाले और उत्तर अवस्थासे उत्पन्न होने वाले स्पर्श-रस-गंध-वर्णादिक परिणामी गुणोंमें मक्खनपर्याय विनाशको प्राप्त होती है तथा घीपर्याय उत्पन्न होती है; उसीप्रकार सर्व भावोंका भी वैसा ही है [ अर्थात् समस्त द्रव्योंको नवीन पर्यायकी उत्पत्तिमें सत्का विनाश नहीं है तथा असत्का उत्पाद नहीं है, किन्तु सत्का विनाश और असत्का उत्पाद किये बिना ही, पहलेकी [ पुरानी ] अवस्थासे विनाशको प्राप्त होनेवाले और बादकी [ नवीन ] अवस्थासे उत्पन्न होनेवाले * परिणामी गुणोंमें पहलेकी पर्याय विनाश और बादकी पर्यायकी उत्पत्ति होती है ]।। १५ ।।
* परिणामी=परिणमित होनेवाले, परिणामवाले । [ पर्यायार्थिक नयसे गुण परिणामी हैं अर्थात् परिणमित होते हैं । ]
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