SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ ] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [ भगवानश्री कुन्दकुन्द उभाभ्यामशून्यशून्यत्वात्, सहावाच्यत्वात्, भङ्गसंयोगार्पणायामशून्यावाच्यत्वात्, शून्यावाच्य-त्वात्, अशून्यशून्यावाच्यत्वाच्चेति।।१४।। भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो । गुणपञ्जयेसु भावा उप्पादवए पकुव्वंति ।। १५ ।। पंचास्तिकायसंग्रह भावस्य नास्ति नाशो नास्ति अभावस्य चैव उत्पादः । गुणपर्यायेषु भावा उत्पादव्ययान् प्रकुर्वन्ति ।। १५ ।। " पररूपादिसे ] एकही साथ अवाच्य' है, भंगोंके संयोगसे कथन करने पर [५] 'अशून्य और अवाच्य' है, [६]‘शून्य और अवाच्य' है, [७]' अशून्य, शून्य और अवाच्य' है। भावार्थ:- [१] द्रव्य *स्वचतुष्टयकी अपेक्षासे 'है'। [२] द्रव्य परचतुष्टयकी अपेक्षासे ' नहीं है'। [३] द्रव्य क्रमशः स्वचतुष्टयकी और परचतुष्टयकी अपेक्षासे ' है और नहीं है ' । [४] द्रव्य युगपद् स्वचतुष्टयकी और परचतुष्टयकी अपेक्षासे 'अवक्तव्य है'। [५] द्रव्य स्वचतुष्टयकी और युगपद् स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे 'है और अवक्तव्य है'। [६] द्रव्य परचतुष्टयकी, और युगपद् स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे 'नहीं और अवक्तव्य है'। [७] द्रव्य स्वचतुष्टयकी, परचतुष्टयकी और युगपद् स्वपरचतुष्टयकी अपेक्षासे 'है, नहीं है और अवक्तव्य है ' । इसप्रकार यहाँ सप्तभंगी कही गई है।। १४ ।। गाथा १५ अन्वयार्थ:- [ भावस्य ] भावका [ सत्का ] [ नाश: ] नाश [ न अस्ति ] नहीं है [ च एव ] तथा [ अभावस्य ] अभावका [ असत्का ] [ उत्पादः ] उत्पाद [ न अस्ति ] नहीं है; [ भावा: ] भाव [ सत् द्रव्यों ] [ गुणपर्यायषु ] गुणपर्यायोंमें [ उत्पादव्ययान् ] उत्पादव्यय [ प्रकृर्वन्ति ] करते हैं। *स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभावको स्वचतुष्टय कहा जाता है । स्वद्रव्य अर्थात् निज गुणपर्यायोंके आधारभूत वस्तु स्वयं; स्वक्षेत्र अर्थात वस्तुका निज विस्तार अर्थात् स्वप्रदेशसमूह; स्वकाल अर्थात् वस्तुकी अपनी वर्तमान पर्याय; स्वभाव अर्थात् निजगुण - स्वशक्ति । नहि 'भाव' केरो नाश होय, ' अभाव 'नो उत्पाद ना; 'भावो' करे छे नाश ने उत्पाद गुणपर्यायमां । १५ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy