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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २८] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द पद्यन्ते। त्रयाणामप्यमीषां द्रव्यलक्षणानामेकस्मिन्नभिहितेऽन्यदुभयमर्थादेवापद्यते। सच्चेदुत्पादव्ययध्रौव्यवच्च गुणपर्यायवच्च। उत्पादव्ययध्रौव्यवचेत्सच्च गुणपर्यायवच्च। गुणपर्यायवच्चेत्सचोत्पादव्ययध्रौव्यवचेति। सद्धि निन्यानित्यस्वभावत्वाद्धृवत्वमुत्पादव्ययात्मकताञ्च प्रथयति, ध्रुवत्वात्मकैर्गुणैरुत्पादव्ययात्मकैः पर्यायैश्च सहैकत्वञ्चाख्याति। उत्पादव्ययध्रौव्याणि तु नित्या-नित्यस्वरूपं परमार्थं सदावेदयन्ति , गुणपर्यायांश्चात्मलाभनिबन्धनभूतान प्रथयन्ति। द्रव्यके इन तीनों लक्षणोंमेंसे [-सत्, उत्पादव्ययध्रौव्य और गुणपर्यायें इन तीन लक्षणोंमेंसे ] एक का कथन करने पर शेष दोनों [ बिना कथन किये ] अर्थसे ही आजाते हैं। यदि द्रव्य सत् हो, तो वह [१] उत्पादव्ययध्रौव्यवाला और [२] गुणपर्यायवाला होगा; यदि उत्पादव्ययध्रौव्यवाला हो, तो वह [१] सत् और [२] गुणपर्यायवाला होगा; गुणपर्यायवाला हो, तो वह [१] सत् और [२] उत्पादव्ययध्रौव्यवाला होगा। वह इसप्रकार:- सत् नित्यानित्यस्वभाववाला होनेसे [१] ध्रौव्यको और उत्पादव्ययात्मकताको प्रकट करता है तथा [२] ध्रौव्यात्मक गुणों और उत्पादव्ययात्मक पर्यायोंके साथ एकत्व दर्शाता है। उत्पादव्ययध्रौव्य [१] नित्यानित्यस्वरूप 'पारमार्थिक सत्को बतलाते हैं तथा [२] अपने स्वरूपकी प्राप्तिके कारणभूत गुणपर्यायोंको प्रकट करते हैं, 'गुणपर्यायें अन्वय और १। पारमार्थिक वास्तविक; यथार्थ; सच्चा । [वास्तविक सत् नित्यानित्यस्वरूप होता है। उत्पादव्यय अनित्यताको और ध्रौव्य नित्यताको बतलाता है इसलिये उत्पादव्ययध्रौव्य नित्यानित्यस्वरूप वास्तविक सत्को बतलाते है। इसप्रकार 'द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाला है ' ऐसा कहनेसे 'वह सत् है' ऐसा भी बिना कहे ही आजाता है।] २। अपने उत्पादव्ययध्रौव्यके। [यदि गुण हो तभी ध्रौव्य होता है और यदि पर्यायें हों तभी उत्पादव्यय होता है; इसलिये यदि गुणपर्यायें न हों तो उत्पादव्ययध्रौव्य अपने स्वरूपको प्राप्त हो ही नहीं सकते। इसप्रकार 'द्रव्य उत्पादव्ययध्रौव्यवाला है' -ऐसा कहनेसे वह गुणपर्यायवाला भी सिद्ध हो जाता है।] ३। प्रथम तो, गुणपर्यायें अन्वय द्वारा ध्राव्यको सूचित करते हैं और व्यतिरेक द्वारा उत्पादव्ययने सचित करते हैं; इसप्रकार वे उत्पादव्ययध्रौव्यको सचित करते हैं। दूसरे, गुणपर्यायें अन्वय द्वारा नित्यताको बतलाते हैं और व्यतिरेक द्वारा अनित्यतको बतलाते हैं; -इसप्रकार वे नित्यानित्यस्वरूप सत्को बतलाते हैं। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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