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कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
[२७
व्ययध्रौव्याणि वा द्रव्यलक्षणम्। एकजात्यविरोधिनि क्रमभुवां भावानां संताने पूर्वभावविनाशः सुमच्छेदः, उत्तरभावप्रादुर्भावश्च समुत्पादः, पूर्वोतरभावोच्छेदोत्पादयोरपि स्वजातेरपरित्यागो ध्रौव्यम्। तानि सामान्यादेशाद-भिन्नानि विशेषादेशाद्भिन्नानि युगपद्भावीनि स्वभावभूतानि द्रव्यस्य लक्षणं भवन्तीति। गुणपर्याया वा द्रव्यलक्षणम्। अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनोऽन्वयिनो विशेषा गुणा व्यतिरेकिण: पर्यायास्ते द्रव्ये यौगपद्येन क्रमेण च प्रवर्तमानाः कथञ्चिद्भिन्नाः कथञ्चिदभिन्नाः स्वभावभूताः द्रव्यलक्षणतामा
द्रव्यका लक्षण है। प्रश्न:-- यदि सत्ता और द्रव्य अभिन्न है – सत्ता द्रव्यका स्वरूप ही है, तो 'सत्ता लक्षण है और द्रव्य लक्ष्य है' - ऐसा विभाग किसप्रकार घटित होता है ? उत्तर:अनेकान्तात्मक द्रव्यके अनन्त स्वरूप हैं, उनमेंसे सत्ता भी उसका एक स्वरूप है; इसलिये अनन्तस्वरूपवाला द्रव्य लक्ष्य है और उसका सत्ता नामका स्वरूप लक्षण है - ऐसा लक्ष्यलक्षणविभाग अवश्य घटित होता है। इसप्रकार अबाधितरूपसे सत् द्रव्यका लक्षण है।]
अथवा, उत्पादव्ययध्रौव्य द्रव्यका लक्षण है। 'एक जातिका अविरोधक ऐसा जो क्रमभावी भावोंका प्रवाह उसमें पूर्व भावका विनाश सो व्यय है, उत्तर भावका प्रादुर्भाव [-बादके भावकी अर्थात वर्तमान भावकी उत्पत्ति ] सो उत्पाद है और पूर्व-उत्तर भावोंके व्यय-उत्पाद होने पर भी स्वजातिका अत्याग सो ध्रौव्य है। वे उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य -- जो कि सामान्य आदेशसे अभिन्न हैं [अर्थात सामान्य कथनसे द्रव्यसे अभिन्न हैं ], विशेष आदेशसे [ द्रव्यसे ] भिन्न हैं, युगपद् वर्तते हैं और स्वभावभूत हैं वे - द्रव्यका लक्षण हैं।
अथवा, गुणपर्यायें द्रव्यका लक्षण हैं। अनेकान्तात्मक वस्तुके अन्वयी विशेष वे गुण हैं और व्यतिरेकी विशेष वे पर्यायें हैं। वे गुणपर्यायें [ गुण और पर्यायें] - जो कि द्रव्यमें एक ही साथ तथा क्रमशः प्रवर्तते हैं, [ द्रव्यसे ] कथंचित भिन्न और कथंचित अभिन्न हैं तथा स्वभावभूत हैं वे – द्रव्यका लक्षण हैं।
१। द्रव्यमें क्रमभावी भावोंका प्रवाह एक जातिको खंडित नहीं करता-तोड़ता नहीं है अर्थात जाति-अपेक्षासे
सदैव एकत्व ही रखता है। २। अन्वय और व्यतिरेकके लिये पृष्ठ १४ पर टिप्पणी देखिये।
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