________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
पदार्थानां गुणपर्याययोगपूर्वकमस्तित्वं साधयन्ति। अनुमीयते च धर्माधर्माकाशानां प्रत्येकमूर्ध्वाऽधोमध्यलोकविभागरूपेण परिणमनात्कायत्वाख्यं सावयवत्वम्। झविानामपि प्रत्येकमूर्ध्वाधोमध्यलोकविभागरूपेण परिणमनाल्लोकपूरणावस्थाव्यवस्थितव्यक्तस्सदा सन्निहितशक्तेस्तदनुमीयत एव। पुद्गलानामप्यूर्वाधोमध्यलोकविभागरूपपरिणतमहास्कन्धत्वप्राप्तिव्यक्तिशक्तियोगित्वात्तथाविधा सावयवत्वसिद्धिरस्त्येवेति।।५।।
उनकी जो तीन लोकरूप निष्पन्नता [-रचना] कही वह भी उनका अस्तिकायपना [अस्तिपना तथा कायपना] सिद्ध करनेके साधन रूपसे कही है। वह इसप्रकार है :
[१] ऊर्ध्व-अधो-मध्य तीन लोकके उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यवाले भाव- कि जो तीन लोकके विशेषस्वरूप हैं वे-भवते हुए [ परिणमत होते हुए ] अपने मूलपदार्थोंका गुणपर्याययुक्त अस्तित्व सिद्ध करते हैं। [ तीन लोकके भाव सदैव कथंचित् सदृश रहते हैं और कथंचित् बदलते रहते हैं वे ऐसा सिद्ध करते है कि तीन लोकके मूल पदार्थ कथंचित् सदृश रहते हैं और कथंचित् परिवर्तित होते रहते हैं अर्थात् उन मूल पदार्थोंका उत्पाद-व्यय-धौव्यवाला अथवा गुणपर्यायवाला अस्तित्व है।]
[२] पुनश्च, धर्म, अधर्म और आकाश यह प्रत्येक पदार्थ ऊर्ध्व-अधो-मध्य ऐसे लोकके [ तीन ] 'विभागरूपसे परिणमित होनेसे उनके कायत्व नामका सावयवपना है ऐसा अनुमान किया जा सकता है। प्रत्येक जीवके भी ऊर्ध्व-अधो-मध्य ऐसे तीन लोकके [ तीन ] विभागरूपसे परिणमित
१। यदि लोकके ऊर्ध्व, अधः और मध्य ऐसे तीन भाग हैं तो फिर 'यह ऊर्ध्वलोकका आकाशभाग है, यह अधोलोकका आकाशभाग है और यह मध्यलोकका आकाशभाग है' – इसप्रकार आकाशके भी विभाग किये जा सकते हैं और इसलिये यह सावयव अर्थात् कायत्ववाला है ऐसा सिद्ध होता है। इसीप्रकार धर्म और अधर्म भी सावयव अर्थात कायत्ववाले हैं।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com