________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
नारकतिर्यग्मनुष्यदेवत्वलक्षणानां गतीनां निवारणत्वात् पारतंत्र्यनिवृत्तिलक्षणस्य निर्वाणस्य शुद्धात्मतत्त्वोपलम्भरूपस्य परम्परया कारणत्वात् स्वातंत्र्यप्राप्तिलक्षणस्य च फलस्य सद्भावादिति।। २।।
*समवाओ पंचण्हं समउ त्ति जिणुत्तमेहिं पण्णत्तं। सो चेव हवदि लोओ तत्तो अमिओ अलोओ खं ।।३।। *समवादः समवायो वा पंचानां समय इति जिनोत्तमैः प्रज्ञप्तम्। स च एव भवति लोकस्ततोऽमितोऽलोक: खम्।।३।।
[१] 'नारकत्व' तिर्यचत्व, मनुष्यत्व तथा देवत्वस्वरूप चार गतियोंका निवारण' करने के कारण और [२] शुद्धात्मतत्त्वकी उपलब्धिरूप 'निर्वाणका परम्परासे कारण' होनेके कारण [१] परतंत्रतानिवृति जिसका लक्षण है और [२] स्वतंत्रताप्राप्ति जिसका लक्षण है -- ऐसे फल सहित है।
भावार्थ:- वीतरागसर्वज्ञ महाश्रमणके मुखसे नीकले हुए शब्दसमयको कोई आसन्नभव्य पुरुष सुनकर, उस शब्दसमयके वाच्यभूत पंचास्तिकायस्वरूप अर्थ समयको जानता है और उसमें आजाने वाले शुद्धजीवास्तिकायस्वरूप अर्थमें [ पदार्थमें ] वीतराग निर्विकल्प समाधि द्वारा स्थित रहकर चार गतिका निवारण करके, निर्वाण प्राप्त करके, स्वात्मोत्पन्न , अनाकुलतालक्षण, अनन्त सुखको प्राप्त करता है। इस कारणसे द्रव्यागमरूप शब्दसमय नमस्कार करने तथा व्याख्यान करने योग्य है।।२।।
गाथा ३
अन्वयार्थ:- [पंचानां समवादः ] पाँच अस्तिकायका समभावपूर्वक निरूपण [ वा ] अथवा [ समवायः ]
* मूल गाथामें 'समवाओ' शब्द है; संस्कृत भाषामें उसका अर्थ 'समवादः' भी होता है और — समवायः' भी
होता है। १। चार गतिका निवारण [अर्थात् परतन्त्रताकी निवृति ] और निर्वाणकी उत्पत्ति [अर्थात् स्वतन्त्रताकी प्राप्ति ]
वह समयका फल है।
समवाद वा समवाय पांच तणो समय- भाख्युं जिने; ते लोक छे, आगळ अमाप अलोक आभस्वरूप छे।३।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com