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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन [७ समणमुहुग्गदमटुं चदुग्गदिणिवारणं सणिव्वाणं। एसो पणमिय सिरसा समयमियं सणह वोच्छामि।।२।। श्रमणमुखोद्गतार्थं चतुर्गतिनिवारणं सनिर्वाणम्। एष प्रणम्य शिरसा समयमिमं शृणुत वक्ष्यामि।।२।। समयो ह्यागमः। तस्य प्रणामपूर्वकमात्मनाभिधानमत्र प्रतिज्ञातम्। युज्यते हि स प्रणन्तुमभिधातुं चाप्तोपदिष्ठत्वे सति सफलत्वात्। तत्राप्तोपदिष्टत्वमस्य श्रमणमुखोद्गतार्थत्त्वात्। श्रमणा हि महाश्रमणा: सर्वज्ञवीतरागाः। अर्थः पुनरनेकशब्दसंबन्धेनाभिधीयमानो वस्तुतयैकोऽभिधेय। सफलत्वं तु चतसृणां गाथा २ अन्वयार्थ:- [श्रमणमुखोद्गतार्थे ] श्रमणके मुखसे निकले हुए अर्थमय [-सर्वज्ञ महामुनिके मुखसे कहे गये पदार्थों का कथन करनेवाले ], [चतुर्गतिनिवारणं] चार गतिका निवारण करनेवाले और [ सनिर्वाणम् ] निर्वाण सहित [-निर्वाणके कारणभूत ] - [इमं समयं] ऐसे इस समयको [ शिरसा प्रणम्य शिरसा नमन करके [ एषवक्ष्यामि ] मैं उसका कथन करता हूँ; [श्रृणुत] वह श्रवण करो। टीका:- समय अर्थात आगम; उसे प्रणाम करके स्वयं उसका कथन करेंगे ऐसी यहाँ [श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने] प्रतिज्ञा की है। वह [ समय ] प्रणाम करने एवं कथन करने योग्य है, क्योंकि वह "आप्त द्वारा उपदिष्ट होनेसे सफल है। वहाँ, उसका आप्त द्वारा उपदिष्टपना इसलिए है कि जिससे वह 'श्रमणके मुखसे निकला हुआ अर्थमय' है। 'श्रमण' अर्थात् महाश्रमणसर्वज्ञवीतरागदेव; और 'अर्थ' अर्थात् अनेक शब्दोंके सम्बन्धसे कहा जानेवाला , वस्तुरूपसे एक ऐसा पदार्थ। पुनश्च उसकी [-समयकी ] सफलता इसलिए है कि जिससे वह समय * आप्त = विश्वासपात्र; प्रमाणभूत; यथार्थ वक्ता। [ सर्वज्ञदेव समस्त विश्वको प्रति समय संपूर्णरूपसे जान रहे हैं और वे वीतराग [ मोहरागद्वेषरहित] होनेके कारण उन्हें असत्य कहनेका लेशमात्र प्रयोजन नहीं रहा है; इसलिए वीतराग-सर्वज्ञदेव सचमुच आप्त हैं। ऐसे आप्त द्वारा आगम उपदिष्ट होनेसे वह [आगम] सफल हैं। आ समयने शिरनमनपूर्वक भालुं छु सूणजो तमे; जिनवदननिर्गत-अर्थमय , चउगतिहरण , शिवहेतु छ। २। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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