________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
कहानजैनशास्त्रमाला]
नवपदार्थपूर्वक-मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
[ २५३
न पुनरन्यथा। व्यवहारनयेन भिन्नसाध्यसाधनभावमवलम्ब्यानादिभेदवासितबुद्धयः सुखेनैवावतर-न्ति तीर्थं प्राथमिकाः। तथा हीदं श्रद्धेयमिदमश्रद्धेयमयं श्रद्धातेदं श्रद्धानमिदं ज्ञेयमिदमज्ञेयमयं ज्ञातेदं ज्ञानमिदं चरणीयमिदमचरणीयमयं चरितेदं चरणमिति कर्तव्याकर्तव्यकर्तृकर्मविभागावलोकनोल्लसितपेशलोत्साहाः शनैःशनैर्मोहमलमुन्मूलयन्तः, कदाचिदज्ञानान्मदप्रमादतन्त्रतया शिथिलितात्माधिकारस्यात्मनो
-
-
-
-
-
-
-
अन्य प्रकारसे नहीं होती।
[ उपरोक्त बात विशेष समझाई जाती है:-]
अनादि कालसे भेदवासित बुद्धि होनेके कारण प्राथमिक जीव व्यवहारनयसे 'भिन्नसाध्यसाधनभावका अवलम्बन लेकर सुखसे तीर्थका प्रारम्भ करते हैं [अर्थात् सुगमतासे मोक्षमार्गकी प्रारम्भभूमिकाका सेवन करते हैं । जैसे कि [१] यह श्रद्धेय [ श्रद्धा करनेयोग्य ] [२] यह अश्रद्धेय है, [३] यह श्रद्धा करनेवाला है और [४] यह श्रद्धान है; [१] यह ज्ञेय [ जाननेयोग्य ] है, [२] यह अज्ञेय है, [३] यह ज्ञाता है और [४] यह ज्ञान है; [१] यह आचरणीय [ आचरण करनेयोग्य ] है, [२] यह अनाचरणीय है, [३] यह आचरण करनेवाला है और [४] यह आचरण है;'-इस प्रकार [१] कर्तव्य [करनेयोग्य], [२] अकर्तव्य, [३] कर्ता और [४] कर्मरूप विभागोंके अवलोकन द्वारा जिन्हें कोमल उत्साह उल्लसित होता है ऐसे वे [ प्राथमिक जीव] धीरे-धीरे मोहमल्लको [ रागादिको] उखाड़ते जाते हैं; कदाचित् अज्ञानके कारण [स्वसंवेदनज्ञानके अभावके कारण ] मद [ कषाय] और प्रमादके वश होनेसे अपना आत्म-अधिकार
१। मोक्षमार्गप्राप्त ज्ञानी जीवोंको प्राथमिक भूमिकामें, साध्य तो परिपूर्ण शुद्धतारूपसे परिणत आत्मा है और उसका
साधन व्यवहारनयसे [आंशिक शुद्धिके साथ-साथ रहनेवाले ] भेदरत्नत्रयरूप परावलम्बी विकल्प कहे जाते है। इस प्रकार उन जीवोंको व्यवहारनयसे साध्य और साधन भिन्न प्रकारके कहे गए हैं। [निश्चयनयसे साध्य और साधन अभिन्न होते हैं।] २। सुखसे = सुगमतासे; सहजरूपसे; कठिनाई बिना। [जिन्होंने द्रव्यार्थिकनयके विषयभूत शुद्धात्मस्वरूपके श्रद्धानादि किए हैं ऐसे सम्यग्ज्ञानी जीवोंको तीर्थसेवनकी प्राथमिक दशामें [-मोक्षमार्गसेवनकी प्रारंभिक भूमिकामें ] आंशिक शुद्धिके साथ-साथ श्रद्धानज्ञानचारित्र सम्बन्धी परावलम्बी विकल्प [ भेदरत्नत्रय ] होते हैं, क्योंकि अनादि कालसे जीवोंको जो भेदवासनासे वासित परिणति चली आ रही है उसका तुरन्त ही सर्वथा नाश होना कठिन है।]
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com