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________________ १८४ ] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अथ अजीवपदार्थव्याख्यानम्। पंचास्तिकायसंग्रह आगासकालपोग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा।। १२४ ।। आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु न सन्ति जीवगुणाः । तेषामचेतनत्वं भणितं जीवस्य चेतनता।। १२४।। आकाशादीनामेवाजीवत्वे हेतूपन्यासोऽयम्। आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु चैतन्यविशेषरूपा जीवगुणा नो विद्यंते, आकाशादीनां तेषामचेतनत्वसामान्यत्वात्। अचेतनत्वसामान्यञ्चाकाशादीनामेव, जीवस्यैव चेतनत्वसामान्यादिति।। १२४ ।। अब अजीवपदार्थका व्याख्यान है । सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्मं च अहिदभीरुत्तं । जस्स ण विज्जदि णिच्चं तं समणा बेंति अज्जीवं ।। १२५ ।। [ भगवान श्रीकुन्दकुन्द गाथा १२४ अन्वयार्थ:- [ आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु ] आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्ममें [ जीवगुणाः न सन्ति ] जीवके गुण नहीं है; [ क्योंकि ] [ तेषाम् अचेतनत्वं भणितम् ] उन्हें अचेतनपना कहा है, [ जीवस्य चेतनता ] जीवको चेतनता कही है। 1 टीका:- यह, आकाशादिका ही अजीवपना दर्शानेके लिये हेतुका कथन है। आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्ममें चैतन्यविशेषोंरूप जीवगुण विद्यमान नहीं है; क्योंकि उन आकाशादिको अचेतनत्वसामान्य है । और अचेतनत्वसामान्य आकाशादिको ही है, क्योंकि जीवको ही चेतनत्वसामान्य है ।। १२४ ।। जीवगुण नहि आभ-धर्म-अधर्म- पुद्गल - काळमां; तेमां अचेतनता कही, चेतनपणुं कह्युं जीवमां । १२४ । सुखदुःखसंचेतन, अहितनी भीति, उद्यम हित विषे जेने कदी होतां नथी, तेने अजीव श्रमणो कहे । १२५ । सुखदुःखज्ञानं वा हितपरिकर्म चाहितभीरुत्वम्। यस्य न विद्यते नित्यं तं श्रमणा ब्रुवन्त्यजीवम् ।। १२५ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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