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कहानजैनशास्त्रमाला ]
नवपदार्थपूर्वक–मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
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भिन्नस्वभावभूतौ मूलपदार्थौ । जीवपुद्गलसंयोगपरिणामनिर्वृत्ताः सप्तान्ये पदार्थाः। शुभपरिणामो जीवस्य, तन्निमित्त: कर्मपरिणामः पुद्गलानाञ्च पुण्यम् । अशुभपरिणामो जीवस्य तन्निमित्त: कर्मपरिणाम: पुद्गलानाञ्च पापम् । मोहरागद्वेषपरिणामो जीवस्य तन्निमित्त: कर्मपरिणामो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानाञ्चास्रवः । मोहरागद्वेषपरिणामनिरोधो जीवस्य तन्निमित्त: कर्मपरिणामनिरोधो योगद्वारेण प्रविशतां पुद्गलानाञ्च संवरः । कर्मवीर्यशातनसमर्थो बहिरङ्गांतरङ्गतपोभिर्बृहित-शुद्धोपयोगो जीवस्य, तदनुभावनीरसीभूतानामेकदेशसंक्षयः समुपात्तकर्मपुद्गलानाञ्च निर्जरा । मोहरागद्वेषस्निग्धपरिणामो जीवस्य तन्निमित्तेन कर्मत्वपरिणतानां जीवेन सहान्योन्यसंमूर्च्छनं पुद्गलानाञ्च बंधः। अत्यंतशुद्धात्मोपलम्भो जीवस्य जीवेन सहात्यंत- विश्लेषः कर्मपुद्गलानां च मोक्ष इति ।। १०८ ।।
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जीव और पुद्गलके संयोगपरिणामसे उत्पन्न सात अन्य पदार्थ हैं। [ उनका संक्षिप्त स्वरूप निम्नानुसार है - ] जीवके शुभ परिणाम [ वह पुण्य हैं ] तथा वे [ शुभ परिणाम ] जिसका निमित्त हैं ऐसे पुद्गलोंके कर्मपरिणाम [ - शुभकर्मरूप परिणाम ] वह पुण्य हैं । जीवके अशुभ परिणाम [ वह पाप हैं] तथा [ अशुभ परिणाम ] जिसका निमित्त हैं ऐसे पुद्गलोंके कर्मपरिणाम [–अशुभकर्मरूप परिणाम ] वह पाप हैं। जीवके मोहरागद्वेषरूप परिणाम [ वह आस्रव हैं ] तथा वे [ मोहरागद्वेषरूप परिणाम ] जिसका निमित्त हैं ऐसे जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके कर्मपरिणाम वह आस्रव हैं। जीवके मोहरागद्वेषरूप परिणामका निरोध [ वह संवर हैं ] तथा वह [ मोहरागद्वेषरूप परिणामका निरोध ] जिसका निमित्त हैं ऐसा जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके कर्मपरिणामका निरोध वह संवर है। कर्मके वीर्यका [ – कर्मकी शक्तिका ] 'शातन करनेमें समर्थ ऐसा जो बहिरंग और अन्तरंग [बारह प्रकारके ] तपों द्वारा वृद्धिको प्राप्त जीवका शुद्धोपयोग [ वह निर्जरा है ] तथा उसके प्रभावसे [ – वृद्धिको प्राप्त शुद्धोपयोगके निमित्तसे ] नीरस हुए ऐसे उपार्जित कर्मपुद्गलोंका एकदेश संक्षय वह निर्जरा है। जीवके, मोहरागद्वेष द्वारा स्निग्ध परिणाम [ वह बन्ध है ] तथा उसके [ – स्निग्ध परिणामके ] निमित्तसे कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य अवगाहन [ - विशिष्ट शक्ति सहित एकक्षेत्रावगाहसम्बन्ध ] वह बन्ध है। जीवकी अत्यन्त शुद्ध आत्मोपलब्धि [ वह मोक्ष है ] तथा कर्मपुद्गलोंका जीवसे अत्यन्त विश्लेष [ वियोग ] वह मोक्ष है ।। १०८ ।।
१। शातन करना = पतला करना; हीन करना; क्षीण करना; नष्ट करना ।
२ | संक्षय = सम्यक् प्रकारसे क्षय ।
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