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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १६२] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द अभिवंद्य शिरसा अपुनर्भवकारणं महावीरम्। तेषां पदार्थभङ्गं मार्ग मोक्षस्य वक्ष्यामि।। १०५।। आप्तस्तुतिपुरस्सरा प्रतिज्ञेयम्। अमुना हि प्रवर्तमानमहाधर्मतीर्थस्य मूलकर्तृत्वेनापुनर्भवकारणस्य भगवतः परमभट्टारकमहादेवाधिदेवश्रीवर्द्धमानस्वामिनः सिद्धिनिबंधनभूतां भावस्तुतिमासूत्र्य, कालकलितपञ्चास्ति-कायानां पदार्थविकल्पो मोक्षस्य मार्गश्च वक्तव्यत्वेन प्रतिज्ञात इति।।१०५।। सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं। मोक्खस्स हवदि मग्गो भव्वाणं लद्धबुद्धीणं ।। १०६ ।। सम्यक्त्वज्ञानयुक्तं चारित्रं रागद्वेषपरिहीणम्। मोक्षस्य भवति मार्गो भव्यानां लब्धबुद्धीनाम्।। १०६ ।। गाथा १०५ अन्वयार्थ:- [अपुनर्भवकारणं] अपुनर्भवके कारण [महावीरम् ] श्री महावीरको [ शिरसा अभिवंद्य] शिरसा वन्दन करके, [ तेषां पदार्थभङ्ग] उनका पदार्थभेद [-काल सहित पंचास्तिकायका नव पदार्थरूप भेद ] तथा [ मोक्षस्य मार्गं ] मोक्षका मार्ग [ वक्ष्यामि ] कहूँगा। टीकाः- यह , आप्तकी स्तुतिपूर्वक प्रतिज्ञा है। प्रवर्तमान महाधर्मतीर्थके मूल कर्तारूपसे जो अपुनर्भवके कारण हैं ऐसे भगवान, परम भट्टारक, महादेवाधिदेव श्री वर्धमानस्वामीकी, सिद्धत्वके निमित्तभूत भावस्तुति करके, काल सहित पंचास्तिकायका पदार्थभेद [ अर्थात् छह द्रव्योंका नव पदार्थरूप भेद ] तथा मोक्षका मार्ग कहनेकी इन गाथासूत्र में प्रतिज्ञा की गई है।। १०५ ।। * अपुनर्भव = मोक्ष। [ परम पूज्य भगवान श्री वर्धमानस्वामी, वर्तमानमें प्रवर्तित जो रत्नत्रयात्मक महाधर्मतीर्थ उसके मूल प्रतिपादक होनेसे, मोक्षसुखरूपी सुधारसके पिपासु भव्योंको मोक्षके निमित्तभूत हैं।] सम्यक्त्वज्ञान समेत चारित रागद्वेषविहीन जे, ते होय छे निर्वाणमारग लब्धबुद्धि भव्यने। १०६ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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