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कहानजैनशास्त्रमाला]
नवपदार्थपूर्वक-मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
[१६३
मोक्षमार्गस्यैव तावत्सूचनेयम्।
सम्यक्त्वज्ञानयुक्तमेव नासम्यक्त्वज्ञानयुक्तं, चारित्रमेव नाचारित्रं, रागद्वेषपरिहीणमेव न रागद्वेषापरिहीणम्, मोक्षस्यैव न भावतो बंधस्य, मार्ग एव नामार्गः, भव्यानामेव नाभव्यानां, लब्धबुद्धीनामेव नालब्धबुद्धीनां, क्षीणकषायत्वे भवत्येव न कषायसहितत्वेभवतीत्यष्टधा नियमोऽत्र द्रष्टव्यः।। १०६ ।।
गाथा १०६
अन्वयार्थ:- [सम्यक्त्वज्ञानयुक्त ] सम्यक्त्व और ज्ञानसे संयुक्त ऐसा [चारित्रं] चारित्र[ रागद्वेषपरिहीणम् ] कि जो रागद्वेषसे रहित हो वह, [लब्धबुद्धीनाम् ] लब्धबुद्धि [ भव्यानां] भव्यजीवोंको [ मोक्षस्य मार्ग: ] मोक्षका मार्ग [ भवति ] होता है।
टीकाः- प्रथम, मोक्षमार्गकी ही यह सूचना है।
सम्यक्त्व और ज्ञानसे युक्त ही -न कि असम्यक्त्व और अज्ञानसे युक्त, चारित्र ही - न कि अचारित्र, रागद्वेष रहित हो ऐसा ही [ चारित्र] – न कि रागद्वेष सहित होय ऐसा, मोक्षका ही - भावत: न कि बन्धका, मार्ग ही - न कि अमार्ग, भव्योंको ही - न कि अभव्योंको , लब्धबुद्धियों को ही - न कि अलब्धबुद्धियोंको, क्षीणकषायपनेमें ही होता है- न कि कषायसहितपनेमें होता है। इस प्रकार आठ प्रकारसे नियम यहाँ देखना [अर्थात् इस गाथामें उपरोक्त आठ प्रकारसे नियम कहा है ऐसा समझना]।। १०६ ।।
१। भावतः = भाव अनुसार; आशय अनुसार। [ 'मोक्षका' कहते ही ‘बन्धका नहीं' ऐसा भाव अर्थात् आशय स्पष्ट
समझमें आता है।]
२। लब्धबुद्धि = जिन्होंने बुद्धि प्राप्त की हो ऐसे।
३। क्षीणकषायपनेमें ही = क्षीणकषायपना होते ही ; क्षीणकषायपना हो तभी। [ सम्यक्त्वज्ञानयुक्त चारित्र - जो कि रागद्वेषरहित हो वह, लब्धबुद्धि भव्यजीवोंको, क्षीणकषायपना होते ही, मोक्षका मार्ग होता है।]
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