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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
कहानजैनशास्त्रमाला ]
अथ कालद्रव्यव्याख्यानम् ।
छालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो । दोहं एस सहावो कालो खणभंगुरो णियदो ।। १०० ।।
कालः परिणामभवः परिणामो द्रव्यकालसंभूतः । द्वयोरेष स्वभावः कालः क्षणभङ्गुरो नियतः।। १०० ।।
व्यवहारकालस्य निश्चयकालस्य च स्वरूपाख्यानमेतत्।
त्त्र क्रमानुपाती समयाख्यः पर्यायो व्यवहारकाल:, तदाधारभूतं द्रव्यं निश्चयकालः। त्त्र व्यवहारकालो निश्चयकालपर्यायरूपोपि जीवपुद्गलानां परिणामेनावच्छिद्यमानत्वात्तत्परिणामभव इत्युपगीयते, जीवपुद्गलानां परिणामस्तु बहिरङ्गनिमित्तभूतद्रव्यकालसद्भावे सति संभूतत्वाद्द्रव्य
अब कालद्रव्यका व्याख्यान है 1
गाथा १००
[ १५३
अन्वयार्थ:- [ कालः परिणामभवः ] काल परिणामसे उत्पन्न होता है [ अर्थात् व्यवहारकाल का माप जीव-पुद्गलोंके परिणाम द्वारा होता है ]; [ परिणाम: द्रव्यकालसंभूतः ] परिणाम द्रव्यकाल से उत्पन्न होता है।— [ द्वयोः एष: स्वभाव: ] यह दोनोंका स्वभाव है । [ कालः क्षणभुङ्गुर : नियतः ] काल क्षणभंगुर तथा नित्य है ।
टीका:- यह, व्यवहारकाल तथा निश्चयकालके स्वरूपका कथन है।
वहाँ, ‘समय' नामकी जो क्रमिक पर्याय सो व्यवहारकाल है; उसके आधारभूत द्रव्य वह निश्चयकाल है।
वहाँ, व्यवहारकाल निश्चयकालकी पर्यायरूप होने पर भी जीव- पुद्गलोंके परिणामसे मापा जाता है ज्ञात होता है इसलिये 'जीव - पुद्गलोंके परिणामसे उत्पन्न होनेवाला' कहलाता है; और जीव-पुद्गलोंके परिणाम बहिरंग - निमित्तभूत द्रव्यकालके सद्भावमें उत्पन्न होनेके कारण ‘द्रव्यकालसे उत्पन्न होनेवाले' कहलाते हैं। वहाँ तात्पर्य यह है कि व्यवहारकाल जीव- पुद्गलोंके परिणाम द्वारा
परिणामभव छे काळ, काळपदार्थभव परिणाम छे;
-आ छे स्वभावो उभयना; क्षणभंगी ने ध्रुव काळ छे । १०० ।
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