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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवान श्रीकुन्दकुन्द
मूर्तोमूर्तलक्षणाख्यानमेतत्।
इह हि जीवै: स्पर्शनरसनध्राणचक्षुर्भिरिन्द्रियैस्तद्विषयभूताः स्पर्शरसगंधवर्णस्वभावा अर्था गृह्यंते।। श्रोत्रेन्द्रियेण तु त एव तद्विषयहेतुभूतशब्दाकारपरिणता गृह्यंते । ते कदाचित्स्थूलस्कंधत्वमापन्नाः कदाचित्सूक्ष्मत्वमापन्नाः कदाचित्परमाणुत्वमापन्नाः इन्द्रियग्रहणयोग्यतासद्भावाद् गृह्यमाणा अगृह्यमाणा वा मूर्ता इत्युच्यते । शेषमितरत् समस्तमप्यर्थजातं स्पर्शरसगंधवर्णाभावस्वभावमिन्द्रियग्रहणयोग्यताया अभावादमूर्तमित्युच्यते । चित्तग्रहणयोग्यतासद्भावभाग्भवति तदुभयमपि, चितं, ह्यनियतविषयमप्राप्यकारि मतिश्रुतज्ञानसाधनीभूतं मूर्तममूर्तं च समाददातीति।। ९९।।
- इति चूलिका समाप्ता ।
टीका:- यह मूर्त और अमूर्तके लक्षणका कथन है ।
इस लोकमें जीवों द्वारा स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, ध्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय द्वारा उनके [-उन इन्द्रियोंके ] विषयभूत, स्पर्श-रस-गंध-वर्णस्वभाववाले पदार्थ [ – स्पर्श, रस, गंध और वर्ण जिनका स्वभाव है ऐसे पदार्थ ] ग्रहण होते हैं [ - ज्ञात होते हैं ]; और श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा वही पदार्थ उसके [श्रोत्रैन्द्रियके ] 'विषयहेतुभूत शब्दाकार परिणमित होते हुए ग्रहण होते हैं। [ वे पदार्थ ], कदाचित् स्थूलस्कन्धपनेको प्राप्त होते हुए, कदाचित् सूक्ष्मत्वको [ सूक्ष्मस्कंधपनेको ] प्राप्त होते हुए और कदाचित् परमाणुपनेको प्राप्त होते हुए इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होते हों या न होते हों, इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होनेकी योग्यताका [ सदैव ] सद्भाव होनेसे 'मूर्त कहलाते हैं।
स्पर्श-रस-गंध-वर्णका अभाव जिसका स्वभाव है ऐसा शेष अन्य समस्त पदार्थसमूह इीनद्रयों द्वारा ग्रहण होनेकी योग्यताके अभावके कारण 'अमूर्त कहलाता है।
२
वे दोनों [–पूर्वोक्त दोनों प्रकारके पदार्थ ] चित्त द्वारा ग्रहण होनेकी योग्यताके सद्भाववाले हैं; चित्त- जो कि अनियत विषयवाला, अज्जाप्यकारी और मतिश्रुतज्ञानके साधनभूत [ - मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञानमें निमित्तभूत ] है वह - मूर्त तथा अमूर्तको ग्रहण करता है [ - जानता है ] ।। ९९ ।।
इस प्रकार चूलिका समाप्त हुई।
४। उन स्पर्श-रस-गंध-वर्णसवभाववाले पदार्थोहको [ अर्थात् पुद्गलोंको ] श्रोत्रैन्द्रियके विषय होनेमें हेतुभूत शब्दाकारपरिणाम है, इसलिये वे पदार्थ [ पुद्गल ] शब्दाकार परिणमित होते हुए श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्रहण होते
हैं।
५। अनियत=अनिश्चित । [ जिस प्रकार पाँच इन्द्रियोंमेंसे प्रतयेक इन्द्रियका विषय नियत है उस प्रकार मनका विषय नियत नहीं है, अनियत है
६। अज्जाप्यकारी=ज्ञेय विषयोंका स्पर्श किये बिना कार्य करनेवाला यजाननेवाला । [ मन और चक्षु अज्जाप्यकारी हैं, चक्षुके अतिरिक्त चार इन्द्रियाँ प्राप्यकारी हैं । ]
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