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कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
अथ चूलिका।
आगासकालजीवा धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा। मुत्तं पुग्गलदव्वं जीवो खलु चेदणो तेसु।। ९७।।
आकाशकालजीवा धर्माधौ च मूर्तिपरिहीनाः।
मूर्तं पुद्गलद्रव्यं जीवः खलु चेतनस्तेषु ।। ९७ ।। अत्र द्रव्याणां मूर्तामूर्तत्वं चेतनाचेतनत्वं चोक्तम्।
स्पर्शरसगंधवर्णसद्भावस्वभावं मूर्तं, स्पर्शरसगंधवर्णाभावस्वभावममूर्तम्। चैतन्यसद्भाव-स्वभावं चेतनं, चैतन्याभावस्वभावमचेतनम्। तत्रामूर्तमाकाशं, अमूर्तः कालः, अमूर्त: स्वरूपेण जीव: पररूपावेशान्मूर्तोऽपि अमूर्तो धर्मः अमूर्ताऽधर्मः, मूर्तः पुद्गल एवैक इति। अचेतनमाकाशं ,
अब, चूलिका है।
गाथा ९७
अन्वयार्थ:- [ आकाशकालजीवाः] आकाश, काल जीव, [धर्माधर्मी च] धर्म और अधर्म [ मूर्तिपरिहीनाः ] अमूर्त है, [ पुद्गलद्रव्यं मूर्तं ] पुद्गलद्रव्य मूर्त है। [ तेषु ] उनमें [ जीव: ] जीव [ खलु ] वास्तवमें [ चेतनः ] चेतन है।
____टीकाः- यहाँ द्रव्योंका मूर्तोमूर्तपना [-मूर्तपना अथवा अमूर्तपना] और चेतनाचेतनपना [चेतनपना अथवा अचेतनपना] कहा गया है।
स्पर्श-रस-गंध-वर्णका सद्भाव जिसका स्वभाव है वह मूर्त है; स्पर्श-रस-गंध-वर्णका अभाव जिसका स्वभाव है वह अमूर्त है। चैतन्यका सद्भाव जिसका स्वभाव है वह चेतन है; चैतन्यका अभाव जिसका स्वभाव है वह अचेतन है। वहाँ आकाश अमूर्त है, काल अमूर्त है, जीव स्वरूपसे अमूर्त है,
१। चूलिका शास्त्रमें जिसका कथन न हुआ हो उसका व्याख्यान करना अथवा जिसका कथन हो चुका हो उसका विशेष व्याख्यान करना अथवा दोनोंका यथायोग्य व्याख्यान करना।
आत्मा अने आकाश, धर्म अधर्म , काळ अमूर्त छे, छे मूर्त पुद्गलद्रव्यः तेमां जीव छे चेतन खरे। ९७।
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