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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १४२] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द चेत्, सर्वे हि गतिस्थितिमंतः पदार्थाः स्वपरिणामैरेव निश्चयेन गतिस्थिती कुर्वंतीति।।८९।। -इति धर्माधर्मद्रव्यास्तिकायव्याख्यानं समाप्तम्। अथ आकाशद्रव्यास्तिकायव्याख्यानम्। सव्वेसिं जीवाणं सेसासं तह य पुग्गलाणं च। जं देदि विवरमखिलं तं लोगे हवदि आगासं।। ९०।। सर्वेषां जीवानां शेषाणां तथैव पुद्गलानां च। यदृदाति विवरमखिलं तल्लोके भवत्याकाशम्।।९०।। प्रश्न:- ऐसा हो तो गतिस्थितिमान पदार्थोंको गतिस्थिति किस प्रकार होती है ? उत्तर:- वास्तवमें समस्त गतिस्थितिमान पदार्थ अपने परिणामोंसे ही निश्चयसे गतिस्थिति करते हैं।। ८९ ।। इस प्रकार धर्मद्रव्यास्तिकाय और अधर्मद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान समाप्त हुआ। अब आकाशद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान है। गाथा ९० अन्वयार्थ:- [ लोके ] लोकमें [ जीवानाम् ] जीवोंको [च] और [पुद्गलानाम् ] पुद्गलोंको [ तथा एव ] वैसे ही [ सर्वेषाम् शेषाणाम् ] शेष समस्त द्रव्योंको [ यद् ] जो [ अखिलं विवरं] सम्पूर्ण अवकाश [ ददाति ] देता है, [ तद् ] वह [आकाशम् भवति ] आकाश है। जे लोकमां जीव-पुद्गलोने, शेष द्रव्य समस्तने अवकाश दे छे पूर्ण, ते आकाशनामक द्रव्य छ। ९०। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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