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________________ १३६ ] Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचास्तिकायसंग्रह धर्मस्य गतिहेतुत्वे दृष्टांतोऽयम् । स्वयमेव गच्छतां मत्स्यानामुदासीनाविनाभूतसहाय यथोदकं स्वयमगच्छदगमयच्च कारणमात्रत्वेन गमनमनुगृह्णाति तथा धर्मोऽपि स्वयमगच्छन् अगमयंश्च स्वयमेव गच्छतां जीवपुद्गलानामुदासीनाविनाभूतसहायकारणमात्रत्वेन गमनमुनगृह्णाति इति।।८५।। जह हवदि धम्मदव्वं तह तं जाणेह दव्वमधमक्खं । ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव ।। ८६ ।। [ भगवान श्रीकुन्दकुन्द यथा भवति धर्मद्रव्यं तथा तज्जानीहि द्रव्यमधर्माख्यम्। स्थितिक्रियायुक्तानां कारणभूतं तु पृथिवीव ।। ८६ ।। टीका:- यह, धर्मके गतिहेतुत्वका दृष्टान्त है। जिस प्रकार पानी स्वयं गमन न करता हुआ और [ परको ] गमन न कराता हुआ, स्वयमेव गमन करती हुई मछलियोंको उदासीन अविनाभावी सहायरूप कारणमात्ररूपसे गमनमें अनुग्रह करता है, उसी प्रकार धर्म [धर्मास्तिकाय ] भी स्वयं गमन न करता हुआ और [ परको ] गमन न कराता हुआ, स्वयमेव गमन करते हुए जीव - पुद्गलोंको उदासीन अविनाभावी सहायरूप कारणमात्ररूपसे गमनमें * अनुग्रह करता है ।। ८५ ।। गाथा ८६ अन्वयार्थ:- [ यथा ] जिस प्रकार [ धर्मद्रव्यं भवति ] धर्मद्रव्य है [ तथा ] उसी प्रकार [अधर्माख्यम् द्रव्यम् ] अधर्म नामका द्रव्य भी [ जानीहि ] जानो; [ तत् तु ] परन्तु वह [गतिक्रियायुक्तको कारणभूत होनेके बदले ] [ स्थितिक्रियायुक्तानाम् ] स्थितिक्रियायुक्तको [ पृथिवी इव ] पृथ्वीकी भाँति [ कारणभूतम् ] कारणभूत है [अर्थात् स्थितिक्रियापरिणत जीव- पुद्गलोंको निमित्तभूत है ] । * गमनमें अनुग्रह करना अर्थात् गमनमें उदासीन अविनाभावी सहायरूप [ निमित्तरूप ] कारणमात्र होना । ज्यम धर्मनामक द्रव्य तेम अधर्मनामक द्रव्य छे; पण द्रव्य आ छे पृथ्वी माफक हेतु थितिपरिणमितने। ८६ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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