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पंचास्तिकायसंग्रह
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पूर्विकायाः क्षेत्रसंख्यायाः एकेन प्रदेशेनैकाकाशप्रदेशातिवर्तितद्गतिपरिणामावच्छिन्नसमयपूर्विकाया कालसंख्यायाः ऐकन प्रदेशेन पद्विवर्तिजघन्यवर्णादिभावावबोधपूर्विकाया भावसंख्यायाः प्रविभागकरणात् प्रविभक्ता संख्याया अपीति ।। ८० ।।
एयरसवण्णगंधं दोफासं सद्दकारणमसद्दं । खंधंतरिदं दव्वं परमाणु तं वियाणाहि । । ८१ ।।
एकरसवर्णगंधं द्विस्पर्श शब्दकारणमशब्दम् । स्कंधांतरितं द्रव्यं परमाणुं तं विजानिहि ।। ८१ । ।
परमाणुद्रव्ये गुणपर्यायवृत्तिप्ररूपणमेतत्।
सर्वत्रापि परमाणौ रसवर्णगंधस्पर्शाः सहभुवो गुणाः । ते च क्रमप्रवृत्तैस्तत्र स्वपर्यायैर्वर्तन्ते। तथा हि- पञ्चानां रसपर्यायाणामन्यतमेनैकेनैकदा रसो वर्तते ।
गाथा ८९
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द
अन्वयार्थ:- [ तं परमाणुं] वह परमाणु [ एकरसवर्णगंध ] एक रसवाला, एक वर्णवाला, एक गंधवाला तथा [ द्विस्पर्शे ] दो स्पर्शवाला है, [ शब्दकारणम् ] शब्दका कारण है, [ अशब्दम् ] अशब्द है और [ स्कंधांतरितं ] स्कन्धके भीतर हो तथापि [ द्रव्यं ] [ परिपूर्ण स्वतंत्र ] द्रव्य है ऐसा [विजानीहि ] जानो।
टीका:- यह, परमाणुद्रव्यमें गुण-पर्याय वर्तनेका [ गुण और पर्याय होनेका ] कथन है।
सर्वत्र परमाणुमें रस-वर्ण-गंध-स्पर्श सहभावी गुण होते है; और वे गुण उसमें क्रमवर्ती निज पर्यायों सहित वर्तते हैं। वह इस प्रकार :- पाँच रसपर्यायोमेंसे एक समय कोई एक [ रसपर्याय ] सहित रस वर्तता है; पाँच वर्णपर्यायोंमेंसे एक समय किसी एक [ वर्णपर्याय ] सहित वर्ण वर्तता है ;
अक ज वरण-रस-गंध ने बे स्पर्शयुत परमाणु छे,
ते शब्दहेतु, अशब्द छे, ने स्कंधमां पण द्रव्य छे । ८१ ।
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