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कहानजैनशास्त्रमाला ]
षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन
[ १३९
पञ्चानां वर्णपर्यायाणामन्यतमेनैकेनैकदा वर्णो वर्तते । उभयोर्गंधपर्याययोरन्यतरेणैकेनैकदा गंधो वर्तते। चतुर्णां शीतस्निग्धशीतरूक्षोष्णस्निग्धोष्णरूक्षरूपाणां स्पर्शपर्यायद्वंद्वानामन्यतमेनैकेनैकदा स्पर्शो वर्तते। एवमयमुक्तगुणवृत्तिः परमाणुः शब्दस्कंधपरिणतिशक्तिस्वभावात् शब्दकारणम्। एकप्रदेशत्वेन स्निग्धरूक्षत्वप्रत्ययबंधवशादनेकपरमाण्वेक
शब्दपर्यायपरिणतिवृत्त्यभावादशब्दः। त्वपरिणतिरूपस्कंधांतरितोऽपि स्वभावमपरित्यजन्नुपात्तसंख्यत्वादेक एव द्रव्यमिति।। ८१।।
उवभोज्जमिंदिएहिं य इंदियकाया मणो य कम्माणि । जं हवदि मुत्तमण्णं तं सव्वं पुग्गलं जाणे ।। ८२ ।।
उपभोग्यमिन्द्रियैश्चेन्द्रियकाया मनश्च कर्माणि । यद्भवति मूर्तमन्यत् तत्सर्वं पुद्गलं जानीयात् ॥ ८२ ॥
दो गंधपर्यायोंमेंसे एक समय किसी एक [ गंधपर्याय ] सहित गंध वर्तता है; शीत - स्निग्ध, शीत- रूक्ष, उष्ण-स्निग्ध और उष्ण - रूक्ष इन चार स्पर्शपर्यायोंके युगलमेंसे एक समय किसी एक युगक सहित स्पर्श वर्तता है। इस प्रकार जिसमें गुणोंका वर्तन [ - अस्तित्व ] कहा गया है ऐसा यह परमाणु शब्दस्कंधरूपसे परिणमित होने की शक्तिरूप स्वभाववाला होनेसे शब्दका कारण है; एकप्रदेशी होनेके कारण शब्दपर्यायरूप परिणति नही वर्तती होनेसे अशब्द है; और स्निग्ध - रूक्षत्वके कारण बन्ध होनेसे अनेक परमाणुओंकी एकत्वपरिणतिरूप स्कन्धके भीतर रहा हो तथापि स्वभावको नहीं छोड़ता हुआ, संख्याको प्राप्त होनेसे [अर्थात् परिपूर्ण एकके रूपमें पृथक् गिनतीमें आनेसे ] 'अकेला ही द्रव्य है ।। ८१ ।।
गाथा ८२
अन्वयार्थः- [ इन्द्रियैः उपभोग्यम् च ] इन्द्रियों द्वारा उपभोग्य विषय, [ इन्द्रियकायाः ] इन्द्रियाँ, शरीर, [ मनः] मन, [ कर्माणि ] कर्म [ च ] और [ अन्यत् यत् ] अन्य जो कुछ [ मूर्त्तं भवति ] मूर्त हो [ तत् सर्वं ] वह सब [ पुद्गलं जानीयात् ] पुद्गल जानो ।
१। स्निग्ध - रूक्षत्व = चिकनाई और रूक्षता ।
२। यहाँ ऐसा बतलाया है कि स्कंधमें भी प्रत्येक परमाणु स्वयं परिपूर्ण है, स्वतंत्र है, परकी सहायतासे रहित और अपनेसे ही अपने गुणपर्यायमें स्थित है ।
इन्द्रिय वडे उपभोग्य, इन्द्रिय, काय, मन ने कर्म जे, वळी अन्य जे कंई मूर्त ते सघकुंय पुद्गल जाणजे । ८२ ।
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