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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १२८] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द णिच्चो णाणवकासो ण सावकासो पदेसदो भेदा। खंधाणं पि य कत्ता पविहत्ता कालसंखाणं ।। ८०।। नित्यो नानवकाशो न सावकाशः प्रदेशतो भेत्ता। स्कंधानामपि च कर्ता प्रविभक्ता कालसंख्यायाः।। ८०।। परमाणोरेकप्रदेशत्वख्यापनमेतत्। __ परमाणु: स खल्वेकेन प्रदेशेन रूपादिगुणसामान्यभाजा सर्वदैवाविनश्वरत्वान्नित्यः। एकेन प्रदेशेन पदविभक्तवृत्तीनां स्पर्शादिगुणानामवकाशदानान्नानवकाशः। गाथा ८० अन्वयार्थ:- [प्रदेशतः ] प्रदेश द्वारा [ नित्यः ] परमाणु नित्य है, [न अनवकाशः] अनवकाश नहीं है, [ न सावकाश:] सावकाश नहीं है, [ स्कंधानाम् भेत्ता] स्कन्धोंका भेदन करनेवाला [ अपि च कर्ता] तथा करनेवाला है और [ कालसंख्यायाः प्रविभक्ता] काल तथा संख्याको विभाजित करनेवाला है [ अर्थात् कालका विभाजन करता है और संख्याका माप करता है। टीका:- यह, परमाणुके एकप्रदेशीपनेका कथन है। जो परमाणु है, वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा - जो कि रूपादिगुणसामान्यवाला है उसके द्वारा - सदैव अविनाशी होनेसे नित्य है; वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा उससे [-प्रदेशसे] अभिन्न अस्तित्ववाले स्पर्शादिगुणोंको अवकाश देता है इसलिये अनवकाश नहीं है; वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा [ उसमें ] द्वि-आदि प्रदेशोंका अभाव होनेसे, स्वयं ही आदि, स्वयं ही मध्य और स्वयं ही अंत होनेके कारण [अर्थात् निरंश होनेके कारण], सावकाश नहीं है; वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा स्कंधोंके भेदका निमित्त होनेसे [अर्थात् स्कंधके बिखरने - टूटनेका निमित्त होनेसे ] स्कंधोंका भेदन करनेवाला है; वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा स्कंधके संघातका निमित्त होनेसे [अर्थात् स्कन्धके मिलनेका -रचनाका निमित्त होनेसे] स्कंधोंका कर्ता है; वह वास्तवमें एक प्रदेश द्वारा - जो कि एक नहि अनवकाश, न सावकाश प्रदेशथी, अणु शाश्वतो, भेत्ता रचयिता स्कंधनो, प्रविभागी संख्या-काळनो। ८०। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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