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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन [ १२७ किं च स्वभावनिर्वृत्ताभिरेवानंतपरमाणुमयीभिः शब्दयोग्यवर्गणाभिरन्योन्यमनुप्रविश्य समंततोऽभिव्याप्य पूरितेऽपि सकले लोके। यत्र यत्र बहिरङ्गकारणसामग्री समदेति तत्र तत्र ता: शब्दत्वेनस्वयं व्यपरिणमंत इति शब्दस्य नियतमुत्पाद्यत्वात् स्कंधप्रभवत्वमिति।। ७९ ।। ------- होनेसे वह स्कन्धजन्य हैं, क्योंकि महास्कन्ध परस्पर टकरानेसे शब्द उत्पन्न होता है। पुनश्च यह बात विशेष समझाई जाती है:- एकदूसरेमें प्रविष्ट होकर सर्वत्र व्याप्त होकर स्थित ऐसी जो स्वभावनिष्पन्न ही [-अपने स्वभावसे ही निर्मित्त], अनन्तपरमाणुमयी शब्दयोग्य-वर्गणाओंसे समस्त लोक भरपूर होने पर भी जहाँ-जहाँ बहिरंगकारण सामग्री उदित होती है वहाँ-वहाँ वे वर्गणाएँ 'शब्दरूपसे स्वयं परिणमित होती हैं; इस प्रकार शब्द नित्यतरूपसे [ अवश्य ] उत्पाद्य है; इसलिये वह स्कन्धजन्य है।। ७९।। १। शब्दके दो प्रकार हैं: [१] प्रायोगिक और [२] वैश्रसिक। पुरुषादिके प्रयोगसे उत्पन्न होनेवाले शब्द वह प्रायोगिक हैं और मेघादिसे उत्पन्न होनेवाले शब्द वैश्रसिक हैं। अथवा निम्नोक्तानुसार भी शब्दके दो प्रकार हैं:- [१] भाषात्मक और [२] अभाषात्मक। उनमें भाषात्मक शब्द द्विविध हैं - अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक। संस्कृतप्राकृतादिभाषारूपसे वह अक्षरात्मक हैं और द्वींन्द्रियादिक जीवोंके शब्दरूप तथा [ केवलीभगवानकी] दिव्य ध्वनिरूपसे वह अनक्षरात्मक हैं। अभाषात्मक शब्द भी द्विविध हैं - प्रायोगिक और वैश्रिसिक। वीणा, ढोल, झांझ, बंसरी आदिसे उत्पन्न होता हुआ प्रायोगिक है और मेघादिसे उत्पन्न होता हुआ वैश्रसिक है। किसी भी प्रकारका शब्द हो किन्तु सर्व शब्दोंका उपादानकारण लोकमें सर्वत्र व्याप्त शब्दयोग्य वर्गणाएँ ही है; वे वर्गणाएँ ही स्वयमेव शब्दरूपसे परिणमित होती हैं, जीभ-ढोल-मेध आदि मात्र निमित्तभूत हैं। २। उत्पाद्य उत्पन्न कराने योग्य; जिसकी उत्पत्तिमें अन्य कोई निमित्त होता है ऐसा। ३। स्कन्धजन्य स्कन्धों द्वारा उत्पन्न हो ऐसा: जिसकी उत्पत्तिमें स्कन्ध निमित्त होते हैं ऐसा। [ समस्त लोकमें सर्वत्र व्याप्त अनन्तपरमाणुमयी शब्दयोग्य वर्गणाएँ स्वयमेव शब्दरूप परिणमित होने पर भी वायु-गला-तालुंजिव्हा-ओष्ठ, घंटा-मोगरी आदि महास्कन्धोंका टकराना वह बहिरंगकारणसामग्री है अर्थात् शब्दरूप परिणमनमें वे महास्कन्ध निमित्तभूत हैं इसलिये उस अपेक्षासे [ निमित्त-अपेक्षासे] शब्दको व्यवहारसे स्कन्धजन्य कहा जाता है।] Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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