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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १२६] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द सो खंधप्पभवो खंधो परमाणुसंगसंधादो। पुढेसु तेसु जायदि सद्दो उप्पादिगो णियदो।। ७९ ।। शब्द स्कंधप्रभवः स्कंध: परमाणुसङ्गसङ्घातः। स्पृष्टेषु तेषु जायते शब्द उत्पादिको नियतः।। ७९ ।। शब्दस्य पद्गलस्कंधपर्यायत्वख्यापनमेतत्। इह हि बाह्यश्रवणेन्द्रियावलम्बितो भावेन्द्रियपरिच्छेद्यो ध्वनिः शब्दः। स खलु स्वरूपेणानंतपरमाणूनामेकस्कंधो नाम पर्यायः। बहिरङ्गसाधनीभूतमहास्कंधेभ्यः तथाविधपरिणामेन समुत्पद्यमानत्वात् स्कंधप्रभवः, यतो हि परस्पराभिहतेषु महास्कंधेषु शब्दः समुपजायते। गाथा ७९ अन्वयार्थः- [शब्द: स्कंधप्रभव:] शब्द स्कंधजन्य है। [ स्कंध: परमाणुसङ्गसङ्घात:] स्कंध परमाणुदलका संघात है, [ तेषु स्पृष्टेषु ] और वे स्कंध स्पर्शित होनेस- टकरानेसे [शब्द: जायते] शब्द उत्पन्न होता है; [ नियतः उत्पादिकः ] इस प्रकार वह [ शब्द ] नियतरूपसे उत्पाद्य हैं। टीकाः- शब्द पुद्गलस्कंधपर्याय है ऐसा यहाँ दर्शाया है। इस लोकमें, बाह्य श्रवणेन्द्रिय द्वारा अवलम्बित भावेन्द्रिय द्वारा जानने योग्य ऐसी जो ध्वनि वह शब्द है। वह [शब्द ] वास्तवमें स्वरूपसे अनन्त परमाणुओंके एकस्कंधरूप पर्याय है। बहिरंग साधनभूत [ –बाह्य कारणभूत ] महास्कन्धों द्वारा तथाविध परिणामरूप [शब्दपरिणामरूप] उत्पन्न १। शब्द श्रवणेंद्रियका विषय है इसलिये वह मूर्त है। कुछ लोग मानते हैं तदनुसार शब्द आकाशका गुण नहीं है, क्योंकि अमूर्त आकाशका अमूर्त गुण इन्द्रियका विषय नहीं हो सकता। छे शब्द स्कंधोत्पन्न; स्कंधो अणुसमूहसंधात छे, स्कंधाभिधाते शब्द ऊपजे, नियमथी उत्पाद्य छ। ७९ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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