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कहानजैनशास्त्रमाला]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
प्रदेशः, स एव स्पर्शस्य, स एव रसस्य, स एव गंधस्य, स एव रूपस्येति। ततः क्वचित्परमाणौ गंधगुणे, क्वचित् गंधरसगुणयोः, क्वचित् गंधरसरूपगुणेषु अपकृष्यमाणेषु तदविभक्तप्रदेशः परमाणुरेव विनश्यतीति। न तदपकर्षो युक्तः। ततः पृथिव्यप्तेजोवायुरूपस्य धातुचतुष्कस्यैक एव परमाणु: कारणं परिणामवशात् विचित्रो हि परमाणो: परिणामगुणः क्वचित्कस्यचिद्गुणस्य व्यक्ताव्यक्तत्वेन विचित्रां परिणतिमादधाति। यथा च तस्य परिणामवशादव्यक्तो गंधादिगुणोऽस्तीति प्रतिज्ञायते न तथा शब्दोऽप्यव्यक्तोऽस्तीति ज्ञातुं शक्यते शक्यते तस्यैकप्रदेशस्यानेकप्रदेशात्मकेन शब्देन सहैकत्वविरोधादिति।। ७८।।
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तो उस गुणसे अभिन्न प्रदेशी परमाणु ही विनष्ट हो जायेगा। इसलिये उस गुणकी न्यूनता युक्त [ उचित ] नहीं है। [ किसी भी परमाणुमें एक भी गुण कम हो तो उस गुणके साथ अभिन्न प्रदेशी परमाणु ही नष्ट हो जायेगा; इसलिये समस्त परमाणु समान गुणवाले ही है, अर्थात् वे भिन्न भिन्न जातिके नहीं हैं। इसलिये पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुरूप चार धातुओंका, परिणामके कारण, एक ही परमाणु कारण है [अर्थात् परमाणु एक ही जातिके होने पर भी वे परिणामके कारण चार धातुओंके कारण बनते हैं ]; क्योंकि विचित्र ऐसा परमाणुका परिणामगुण कहीं किसी गुणकी 'व्यक्ताव्यक्तता द्वारा विचित्र परिणतिको धारण करता है।
और जिस प्रकार परमाणुको परिणामके कारण अव्यक्त गंधादिगुण हैं ऐसा ज्ञात होता है उसी प्रकार शब्द भी अव्यक्त है ऐसा नहीं जाना जा सकता, क्योंकि एकप्रदेशी परमाणुको अनेकप्रदेशात्मक शब्दके साथ एकत्व होनेमें विरोध है।। ७८ ।।
१। व्यक्ताव्यक्तता व्यक्तता अथवा अव्यक्तता; प्रगटता अथवा अप्रगटता। [ पृथ्वीमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण यह
चारों गुण व्यक्त [अर्थात् व्यक्तरूपसे परिणत ] होते हैं; पानीमें स्पर्श, रस, और वर्ण व्यक्त होते हैं और गंध अव्यक्त होता है ; अग्निमें स्पर्श और वर्ण व्यक्त होते हैं और शेष दो अव्यक्त होते हैं ; वायुमें स्पर्श व्यक्त होता है और शेष तीन अव्यक्त होते हैं।]
२। जिस प्रकार परमाणुमें गंधादिगुण भले ही अव्यक्तरूपसे भी होते तो अवश्य हैं; उसी प्रकार परमाणुमें शब्द भी
अव्यक्तरूपसे रहता होगा ऐसा नहीं है, शब्द तो परमाणुमें व्यक्तरूपसे या अव्यक्तरूपसे बिलकुल होता ही नहीं
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