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पंचास्तिकायसंग्रह
[भगवानश्रीकुन्दकुन्द
व्यवहियंते, तथैव च बादरसूक्ष्मत्वपरिणामविकल्पैः षट्प्रकारतामापद्य त्रैलोक्यरूपेण निष्पद्य स्थितवंत इति। तथा हि-बादरबादराः, बादराः, बादरसूक्ष्माः, सूक्ष्मबादराः, सूक्ष्माः, सूक्ष्म-सूक्ष्मा इति। तत्र छिन्नाः स्वयं संधानासमर्थाः काष्ठपाषाणदयो बादरबादराः। छिन्नाः स्वयं संधानसमर्थाः क्षीरधृततैलतोयरसप्रभृतयो बादराः। स्थूलोपलंभा अपि छेत्तुं भेत्तुमादातुमशक्या: छायातपतमोज्योत्स्नादयो बादरसूक्ष्माः। सूक्ष्मत्वेऽपि स्थूलोपलंभाः स्पर्शरसगंधशब्दाः सूक्ष्म-बादराः। सूक्ष्मत्वेऽपि हि करणानुपलभ्या: कर्मवर्गणादय: सूक्ष्माः। अत्यंतसूक्ष्माः कर्मवर्गणा-भ्योऽधो व्यणुक स्कंधपर्यन्ताः सूक्ष्मसूक्ष्मा इति।। ७६।।।
'पूरण – गलन' घटित होनेसे परमाणु निश्चयसे पुद्गल' हैं। स्कंध तो अनेकपुद्गलमय एकपर्यायपनेके कारण पुद्गलोंसे अनन्य होनेसे व्यवहारसे ‘पुद्गल' है; तथा [ वे ] बादरत्व और सूक्ष्मत्वरूप परिणामोंके भेदों द्वारा छह प्रकारोंको प्राप्त करके तीन लोकरूप होकर रहे हैं। वे छह प्रकारके स्कंध इस प्रकार हैं:- [१] बादरबादर; [२] बादर; [३] बादरसूक्ष्म; [४] सूक्ष्मबादर; [५] सूक्ष्म; [६] सूक्ष्मसूक्ष्म। वहाँ, [१] काष्ठपाषाणादिक [ स्कंध ] जो कि छेदन होनेपर स्वयं नहीं जुड़ सकते वे [घन पदार्थ ] 'बादरबादर' हैं; [२] दूध, घी, तेल, जल, रस आदि [ स्कंध ] जो कि छेदन होनेपर स्वयं जुड़ जाते हैं वे [ प्रवाही पदार्थ] 'बादर' है; [३] छाया, धूप, अंधकार, चांदनी आदि [ स्कंध] जो कि स्थूल ज्ञात होनेपर भी जिनका छेदन, भेदन अथवा [ हस्तादि द्वारा] ग्रहण नहीं किया जा सकता वे 'बादरसूक्ष्म' हैं; [४] स्पर्श-रस-गंध-शब्द जो कि सूक्ष्म होने पर भी स्थल ज्ञात होते हैं [ अर्थात चक्षको छोड़कर चार इन्द्रियों के विषयभूत स्कंध जो कि आँखसे दिखाई न देने पर भी स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा स्पर्श किया जा सकता है] जीभ द्वारा जिनका स्वाद लिया जा सकता है
धा जा सकता है अथवा कानसे सना जा सकता है वे 'सक्ष्मबादर' हैं; [५] कर्मवर्गणादि [ स्कंध ] कि जिन्हें सूक्ष्मपना है तथा जो इन्द्रियोंसे ज्ञात न हों ऐसे हैं वे 'सूक्ष्म' हैं; [६] कर्मवर्गणासे नीचेके [ कर्मवर्गणातीत द्विअणुक-स्कंध तकके [ स्कंध ] जो कि अत्यन्त सूक्ष्म हैं वे 'सूक्ष्मसूक्ष्म' हैं।। ७६ ।।
१। जिसमें [ स्पर्श-रस-गंध-वर्णकी अपेक्षासे तथा स्कंधपर्यायकी अपेक्षासे] पूरण और गलन हो वह पुद्गल है।
पूरण पुरना; भरना; पूर्ति; पुष्टि; वृद्धि। गलन गलना; क्षीण होना; कृशता; हानिः न्यूनताः [[१] परमाणुओंके विशेष गुण जो स्पर्श-रस-गंध-वर्ण हैं उनमें होनेवाली षट्थानपतित वृद्धि वह पूरण है और षट्रस्थानपतित हानि वह गलन है; इसलिये इस प्रकार परमाणु पूरण-गलनधर्मवाले हैं। [२] परमाणुओंमें स्कंधरूप पर्यायका आविर्भाव होना सो पूरण है और तिरोभाव होना वह गलन है; इस प्रकार भी परमाणुओंमें पूरणगलन घटित होता है। २। स्कंध अनेकपरमाणुमय है इसलिये वह परमाणुओंसे अनन्य है; और परमाणु तो पुद्गल हैं; इसलिये स्कंध भी व्यवहारसे 'पुद्गल' हैं।
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