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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन [१२१ बादरसुहुमगदाणं खंधाणं पुग्गलो त्ति ववहारो। ते होंति छप्पयारा तेलोकं जेहिं णिप्पण्णं ।। ७६ ।। बादरसौक्ष्म्यगतानां स्कंधानां पुद्गलः इति व्यवहारः। ते भवन्ति षट्प्रकारास्त्रैलोक्यं यैः निष्पन्नम्।। ७६ ।। स्कंधानां पुद्गलव्यवहारसमर्थनमेतत्। स्पर्शरसगंधवर्णगुणविशेषैः षट्स्थानपतितवृद्धिहानिभिः पूरणगलनधर्मत्वात् स्कंधव्यक्त्याविर्भावतिरोभावाभ्यामपि च पूरणगलनोपपत्तेः परमाणवः पुद्गला इति निश्चीयंते। स्कंधास्त्वनेकपुद्गलमयैकपर्यायत्वेन पुद्गलेभ्योऽनन्यत्वात्पुद्गला इति गाथा ७६ अन्वयार्थ:- [बादरसौक्ष्म्यगतानां] बादर और सूक्ष्मरूपसे परिणत [ स्कंधानां] स्कंधोंको [पुद्गल: ] 'पुद्गल' [इति] ऐसा [व्यवहारः] व्यवहार है। [ ते] वे [ षट्प्रकाराः भवन्ति ] छह प्रकारके हैं, [यैः ] जिनसे [ त्रैलोक्यं ] तीन लोक [ निष्पन्नम् ] निष्पन्न है। टीका:- स्कंधोंमें 'पुद्गल' ऐसा जो व्यवहार है उसका यह समर्थन है। [१] जिनमें षट्स्थानपतित [छह स्थानोंमें समावेश पानेवाली ] वृद्धिहानि होती है ऐसे स्पर्शरस-गंध-वर्णरूप गुणविशेषोंके कारण [परमाणु] 'पूरणगलन' धर्मवाले होनेसे तथा [२] स्कंधव्यक्तिके [-स्कंधपर्यायके ] आविर्भाव और तिरोभावकी अपेक्षासे भी [ परमाणुओंमें ] सौ स्कंध बादर-सूक्ष्ममा ‘पुद्गल' तणो व्यवहार छे; छ विकल्प छे स्कंधो तणा, जेथी त्रिजग निष्पन्न छ। ७६ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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