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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवान श्रीकुन्दकुन्द
पुद्गलद्रव्यविकल्पनिर्देशोऽयम्।
अनंतानंतपरमाण्वारब्धोऽप्येकः स्कंधो नाम पर्यायः । तदर्ध स्कंधदेशो नाम पर्यायः । तदर्धार्धं स्कंधप्रदेशो नाम पर्यायः । एवं भेदवशात् द्व्यणुकस्कंधादनंता: स्कंधप्रदेशपर्यायाः निर्विभागकप्रदेश: स्कंधस्यांत्यो भेद: परमाणुरेकः । पुनरपि द्वयोः परमाण्वोः संधातादेको द्व्यणुकस्कंधपर्यायः । एवं संधातवशादनंताः स्कंधपर्यायाः । एवं भेदसंधाताभ्यामप्यनंता भवतीति ।। ७५ ।।
टीका:- यह, पुद्गल भेदोंका वर्णन है
अनन्तानन्त परमाणुओंसे निर्मित होने पर भी जो एक हो वह स्कंध नामकी पर्याय है; उसकी आधी स्कंधदेश नामक पर्याय है; आधीकी आधी स्कंधप्रदेश नामकी पर्याय है। इस प्रकार भेदके कारण [ पृथक होनके कारण ] द्वि-अणुक स्कंधपर्यंत अनन्त स्कंधप्रदेशरूप पर्यायें होती हैं। निर्विभाग-एक-प्रदेशवाला, स्कंधका अन्तिम अंश वह एक परमाणु है। [ इस प्रकार *भेदसे होनेवाले पुद्गलविकल्पोंका वर्णन हुआ। ]
पुनश्च, दो परमाणुओंके संघातसे [ मिलनेसे ] एक द्विअणुक - स्कंधरूप पर्याय होती है। इस प्रकार संघातके कारण [ द्विअणुकस्कंधकी भाँति त्रिअणुक - स्कंध, चतुरणुक - स्कंध इत्यादि ] अनन्त स्कंधरूप पर्यायें होती है । [ इस प्रकार संघातसे होनेवाले पुद्गलविकल्पका वर्णन हुआ। ]
इस प्रकार भेद-संघात दोनोंसे भी [ एक साथ भेद और संघात दोनो होनेसे भी ] अनन्त [ स्कंधरूप पर्यायें ] होती हैं । [ इस प्रकार भेद - संघातसे होनेवाले पुद्गलविकल्पका वर्णन हुआ । । ]
७५ ।।
* भेदसे होनेभाले पुद्गलविकल्पोंका [ पुद्गलभेदोंका ] टीकाकार श्री जयसेनाचार्यने जो वर्णन किया है उसका तात्पर्य निम्नानुसार है:- अनन्तपरमाणुपिंडात्मक घटपटादिरूप जो विवक्षित सम्पूर्ण वस्तु उसे 'स्कंध' संज्ञा है। भेद द्वारा उसके जो पुद्गलविकल्प होते हैं वे निम्नोक्त दृष्टान्तानुसार समझना । मानलो कि १६ परमाणुओंसे निर्मित एक पुद्गलपिण्ड है और वह टूटकर उसके टुकड़े होते है । वहाँ १६ परमाणुोंके पूर्ण पुद्गलपिण्डको ‘स्कंध' माने तो ८ परमाणुओंवाला उसका अर्धभागरूप टुकड़ा वह 'देश' है, ४ परमाणुओंवाला उसका चतुर्थभागरूप टुकड़ा वह 'प्रदेश' है और अविभागी छोटे-से-छोटा टुकड़ा वह 'परमाणु' है। पुनश्च जिस प्रकार १६ परमाणुवाले पूर्ण पिण्डको 'स्कंध' संज्ञा है, उसी प्रकार १५ से लेकर ९ परमाणुओं तकके किसी भी टुकड़ेको भी 'स्कंध' संज्ञा है; जिस प्रकार ८ परमाणुओंवाले उसके अर्धभागरूप टुकड़ेको 'देश' संज्ञा है, उसी प्रकार ७ से लेकर ५ परमाणओं तकके उसके किसी भी टुकड़ेको भी 'देश' संज्ञा है; जिस प्रकार ४ परमाणुवाले उसके चतुर्थभागरूप टुकड़ेको 'प्रदेश' संज्ञा है, उसी प्रकार ३ से लेकर २ परमाणु तकके उसके किसी भी टुकड़ेको भी ' प्रदेश' संज्ञा है। - इस दृष्टान्तके अनुसार, भेद द्वारा होनेवाले पुद्गलविकल्प समझना।
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