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योगसार-प्राभृत
सरलार्थ :- तत्त्वज्ञानियों ने मिथ्यादृष्टि, सासादन, मिश्र, असंयतसम्यक्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगकेवली - इन तेरह गुणस्थानों को कर्मप्रकृतियों से निर्मित पौद्गलिक कहा है।
भावार्थ :- गुणस्थानों की पुद्गलमयता को आचार्य कुंदकुंद ने समयसार गाथा ६८ में, आचार्य अमृतचन्द्र ने उक्त गाथा की संस्कृत टीका में तथा पंडित श्री जयचन्दजी छाबडा ने भावार्थ में खुलासे के साथ स्पष्ट किया है, जो इसप्रकार है - ____ अब कहते हैं कि (जैसे वर्णादि भाव जीव नहीं हैं यह सिद्ध हुआ उसीप्रकार) यह भी सिद्ध हुआ कि रागादि भाव भी जीव नहीं हैं :
मोहणकम्मस्सुदया दु वणिया जे इमे गुणढाणा।
ते कह हवंति जीवा जे णिच्चमचेदणा उत्ता।। गाथार्थ :- जो यह गुणस्थान हैं वे मोहकर्म के उदय से होते हैं ऐसा (सर्वज्ञ के आगम में) वर्णन किया गया है; वे जीव कैसे हो सकते हैं कि जो सदा अचेतन कहे गये हैं? ___टीका :- ये मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थान पौद्गलिक मोहकर्म की प्रकृति के उदयपूर्वक होते होने से, सदा ही अचेतन होने से, कारण जैसा ही कार्य होता है ऐसा समझकर (निश्चय कर) जौ पूर्वक होनेवाले जो जौ, वे जौ ही होते हैं इसी न्याय से, वे पुद्गल ही हैं - जीव नहीं। और गुणस्थानों का सदा ही अचेतनत्व आगम से सिद्ध होता है तथा चैतन्यस्वभाव से व्याप्त जो आत्मा उससे भिन्नपने से वे गुणस्थान भेदज्ञानियों के द्वारा स्वयं उपलभ्यमान हैं इसलिये भी उनका सदा ही अचेतनत्व सिद्ध होता है। ___ इसीप्रकार राग, द्वेष, मोह, प्रत्यय, कर्म, नोकर्म, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्मस्थान,
अनुभागस्थान, योगस्थान, बन्धस्थान, उदयस्थान, मार्गणास्थान, स्थितिबन्धस्थान, संक्लेशस्थान, विशुद्धिस्थान और संयमलब्धिस्थान भी पुद्गलकर्मपूर्वक होते होने से, सदा ही अचेतन होने से, पुद्गल ही हैं - जीव नहीं ऐसा स्वतः सिद्ध हो गया। इससे यह सिद्ध हुआ कि रागादिभाव जीव नहीं है।
भावार्थ :- शुद्धद्रव्यार्थिक नय की दृष्टि में चैतन्य अभेद है और उसके परिणाम भी स्वाभाविक शुद्ध ज्ञानदर्शन हैं। परनिमित्त से होनेवाले चैतन्य के विकार, यद्यपि चैतन्य जैसे दिखाई देते हैं तथापि, चैतन्य की सर्व अवस्थाओं में व्यापक न होने से चैतन्यशून्य हैं - जड़ हैं। और आगम में भी उन्हें अचेतन कहा है । भेदज्ञानी भी उन्हें चैतन्य से भिन्नरूप अनुभव करते हैं इसलिये भी वे अचेतन हैं. चेतन नहीं।
प्रश्न :- यदि वे चेतन नहीं हैं तो क्या हैं? वे पुद्गल हैं या कुछ और? उत्तर :- वे पुद्गलकर्मपूर्वक होते हैं इसलिये वे निश्चय से पुद्गल ही हैं क्योंकि कारण जैसा ही
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