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________________ अजीव अधिकार प्रत्यक्ष में भी कोई जीव अथवा पुद्गल अपने स्वरूप को छोड़ता हुआ किसी को देखने-सुनने में नहीं आता । इसलिए जीव-पुद्गलों को परस्पर का कर्ता मानना, यह आगम एवं प्रत्यक्ष से विरुद्ध होने के कारण ऐसी मान्यता छोड़ने में ही हित है। कर्ता-कर्म का यथार्थ ज्ञान करने के लिए हमें समयसार ग्रंथ के कर्ता-कर्म अधिकार का गहराई से अध्ययन करना आवश्यक है। आचार्य उमास्वामीकृत तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय ५, सूत्र २९ में समागत सद्रव्य लक्षणम् इस सूत्र से और अस्तित्वनामक सामान्य गुण के आधार से भी प्रत्येक द्रव्य अपने में पूर्ण, स्वतंत्र एवं स्वाधीन है; कोई किसीका कुछ नहीं कर सकता - यह विषय स्पष्ट हो जाता है। कर्म एवं जीव के विभाव में परस्पर निमित्तपना - सरागं जीवमाश्रित्य कर्मत्वं यान्ति पुद्गला: कर्माण्याश्रित्य जीवोऽपि सरागत्वं प्रपद्यते ।।१०।। अन्वय :- पुद्गला: सरागं जीवं आश्रित्य कर्मत्वं यान्ति (तथा एव) जीवः अपि कर्माणि आश्रित्य सरागत्वं प्रपद्यते। सरलार्थ :- पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणायें सरागी जीव का निमित्त पाकर कर्मपने को प्राप्त होती हैं और जीव भी कर्मों का निमित्त पाकर विभावभावरूप परिणाम को प्राप्त होता है। भावार्थ :- यद्यपि जीव के परिणाम और कर्म के परिणाम में परस्पर कर्ता-कर्मपना न होने पर भी दोनों में निमित्तनैमित्तिक संबंध अवश्य है। इस निमित्त-नैमित्तिक संबंध को समयसार गाथा ८० से ८२ में भी स्पष्ट किया है। कार्माणवर्गणारूप पुद्गल स्वयमेव अपने ही उपादान से कर्मरूप परिणमन करते हैं, तथापि उन्हें जीव का मोह-राग-द्वेषरूप परिणाम निमित्त होता है। इसीप्रकार जीव भी अपने ही उपादान से मोहराग-द्वेषरूप परिणाम करता है; तथापि उसे कर्म का उदय निमित्त होता है। __इस निमित्तनैमित्तिक संबंध के होते हुए भी दोनों का परिणमन स्वतंत्र ही होता है, इसे समझना अति महत्त्वपूर्ण है। अज्ञानी जीव इस निमित्त-नैमित्तिक संबंध को कर्ता-कर्म संबंध मानकर परतंत्रता का ही अनुभव करते हैं। प्रश्न - कर्म के उदय का निमित्त होता रहेगा और जीव मोह-राग-द्वेष परिणाम करता ही रहेगा, तो यह अनादि की परम्परा कब और कैसे टूटेगी? जीव पुरुषार्थ करेगा तब टूटेगी अथवा कर्म इसे रास्ता देगा तब टूटेगी - यह स्पष्ट करें। उत्तर - कर्म रास्ता देगा, उपकार करेगा यह मान्यता मिथ्या है; क्योंकि जडकर्म जो ज्ञान रहित हैं, वे यह काम कैसे करेंगे? जीव ही पुरुषार्थ करेगा तब मुक्तिमार्ग खुलेगा। प्रश्न - कर्म का उदय होगा तो नैमित्तिक मोह-राग-द्वेषभाव होंगे ही। जीव पुरुषार्थ कैसे [C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/75]
SR No.008391
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size920 KB
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