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योगसार-प्राभृत
भावार्थ :- कर्म का उपादान/निजस्वभाव पुद्गलात्मक अचेतन होने से उस कर्म से निर्मित जीव भी चेतना रहित जड ठहरता है । यदि स्वभाव व्यवस्थिति को न मानकर यह कहा जाय कि कर्म अपने उपादान से व्याप्य-व्यापकरूप से जीव के भावों का कर्ता है, निमित्तरूप से नहीं; तो फिर जीव के अचेतनत्व का निषेध कैसे किया जा सकता है? क्योंकि उपादान जब अचेतन होगा तो उसके कार्य को भी अचेतन ही मानना पड़ेगा। दोनों को परस्पर का कर्ता मानने से आपत्ति -
एवं संपद्यते दोषः सर्वथापि दुरुत्तरः ।
चेतनाचेतनद्रव्यविशेषाभावलक्षणः ।।८९।। अन्वय :- एवं (उपर्युक्तकथनानुसारं) चेतन-अचेतन-द्रव्यविशेष-अभावलक्षण: दोषः अपि संपद्यते (य:) सर्वथा दुरुत्तरः (अस्ति)।
सरलार्थ :- इसप्रकार अर्थात् चेतन को अचेतन का और अचेतन को चेतन का उपादान कारण मानने से चेतन और अचेतन द्रव्य में कोई भेद न रहनेरूप दोष उपस्थित होता है, जो किसी तरह भी टाला नहीं जा सकता।
भावार्थ :- जीव और कर्म यदि परस्पर कर्ता बनेंगे तो मात्र जीव तथा पुद्गल में एकरूपता का अर्थात् एक होने का दोष आयेगा, इतना ही नहीं सर्व वस्तु-व्यवस्था ही गडबडा जायेगी।
यदि एक जीव अपने आत्मप्रदेशों के साथ निमित्त-नैमित्तिकरूप से संलग्न अनंतानंत पुद्गलों में से कुछ पुद्गलों को जीवमय करे तो अन्य भी अनंत जीव अपने संबंधित पुद्गलों को जीवमय करेंगे, तो जीव की तथा पुद्गलों की जो नियत संख्या अनादिकाल से सुनिश्चित है, वह सिद्ध नहीं होगी/बदल जायेगी।
इसीतरह पुद्गल भी जीव को पुद्गलमय करते रहेंगे तो थोड़े ही काल में जीवों की संख्या कम होते-होते जीवों का अभाव भी हो सकता है। जीव द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलों की संख्या अनंतगुणा अधिक है। अतः कर्मरूप परिणत अनंतानंत पुद्गल अपने संपर्क में आये हुए जीवों को पुद्गल बनाते जायेंगे और स्वाभाविक ही है कि जीव-पदगलों की नियत संख्या नहीं रहेगी। इतना ही नहीं फिर तो सर्व जीव, पुद्गल हो जायेंगे और जीवों का सर्वथा अभाव हो जायेगा। ___ धर्मादि चारों द्रव्य भी आपस में बदल जायेंगे और उनके भी स्वरूप तथा संख्या की नियत व्यवस्था नष्ट हो जायेगी। सर्व द्रव्यों के अभावरूप सर्वशून्यता नामक महादोष आ जायेगा, जो कि प्रत्यक्षप्रमाण तथा आगमसम्मत नहीं है।
अगुरुलघुत्व नामक सामान्य गुण की परिभाषा के अनुसार द्रव्य का द्रव्यत्व कायम रहता है अर्थात् एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणत नहीं होता, इस नियम को न मानने से आगम को भी नहीं माननेरूप आपत्ति उपस्थित होगी।
[C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/74]