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योगसार-प्राभृत
शुद्धात्मतत्त्वस्य किलोपपंभात् - यह साक्षात् संवर वास्तव में शुद्ध आत्मतत्त्व की उपलब्धि से होता है।' - ऐसा कहा है। परद्रव्योपासक जीव का स्वरूप -
ये मूढा लिप्सवो मोक्षं परद्रव्यमुपासते ।
ते यान्ति सागरं मन्ये हिमवन्तं यियासवः ।।५०।। अन्वय :- ये मोक्षं लिप्सवः परद्रव्यं उपासते ते मूढाः हिमवन्तं यियासवः (अपि) सागरं यान्ति; (इति अहं) मन्ये।
सरलार्थ :- जो मोक्ष की लालसा/तीव्र इच्छा रखते हुए भी परद्रव्य की उपासना करते हैं अर्थात् परद्रव्य के भक्त एवं सेवक बने हुए हैं, परद्रव्यों के पीछे सुख की आशा से दौड़ते हैं, वे मूढ़, अज्ञानीजन हिमवान पर्वत पर चढ़ने के इच्छुक होते हुए भी समुद्र की ओर चले जाते हैं; ऐसा मैं (आचार्य अमितगति) मानता हैं।
भावार्थ :- जैसे हिमवान पर्वत और समुद्र-दोनों परस्पर विरुद्ध दिशा में विद्यमान हैं; वैसे ही मोक्ष और परद्रव्य - इनका स्वरूप परस्पर में एकदम विरुद्ध है। जिसे मोक्ष चाहिए उसकी श्रद्धाज्ञानादि का ढलान मोक्ष की ओर अथवा मोक्ष प्राप्ति में जो निमित्त हों, उनकी ओर स्वाभाविक रूप से ही होता है। यदि मोक्ष, मोक्षमार्ग अथवा इनमें निमित्त पदार्थों को छोड़कर अन्य विषय-कषायों में सहायक पदार्थ की ओर ही श्रद्धादि की प्रवृत्ति हों तो वे जीव आचार्य अमितगति की दृष्टि में बिचारे हैं, दया के पात्र हैं, स्पष्ट शब्दों में कहा जाय तो तीव्र मिथ्यादृष्टि हैं। ध्याता, ध्येय के अनुसार हो जाता है -
परद्रव्यी भवत्यात्मा परद्रव्यविचिन्तकः ।
क्षिप्रमात्मत्वमायाति विविक्तात्मविचिन्तकः॥५१॥ अन्वय:- परद्रव्यविचिन्तकः आत्मा परद्रव्यीभवति, विविक्तात्मविचिन्तकः क्षिप्रंआत्मत्वं आयाति।
सरलार्थ :- जो मूढ़ आत्मा परद्रव्यों की चिंता में मग्न रहता है, वह आत्मा परद्रव्य जैसा हो जाता है। जो साधक आत्मा पर से भिन्न निज शुद्धात्मा के ध्यान में मग्न/लीन रहता है, वह आत्मा शीघ्र आत्मतत्त्व/मोक्ष या मोक्षमार्ग को प्राप्त कर लेता है।
भावार्थ :- पुद्गलादि परद्रव्यों की चिंता/मनन-चिंतन/ध्यान करनेवाला परद्रव्य तो नहीं होता, परद्रव्य के समान होता जाता है अर्थात् मिथ्यात्व, अविरति आदि विभाव परिणामरूप परिणमित होता रहता है । मूढजीव भले अपने त्रिकाली भगवान आत्मा की श्रद्धा-ज्ञान न करे तो भी उसका आत्मा तो अनादि-अनंत शुद्ध ही रहता है। स्वभाव उसे ही कहते हैं, जो कभी बदले नहीं।
आचार्य कुंदकुंद ने समयसार की गाथा १८६ में ध्यान का महत्त्व बताते हुए लिखा है – “शुद्ध
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