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चारित्र अधिकार
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सकती।
यस्येह लौकिकी नास्ति नापेक्षा पारलौकिकी।
युक्ताहारविहारोऽसौ श्रमणः सममानसः ।।४११।। अन्वय :- यस्य (महापुरुषस्य) इह न लौकिकी अपेक्षा अस्ति न पारलौकिकी; युक्ताहारविहारः असौ (महापुरुषः) सममानसः श्रमणः (अस्ति)।
सरलार्थ :- जिस महामानव को इहलोक एवं परलोक संबंधी भोगादिक की अपेक्षा नहीं है अर्थात् जो भोगों से सर्वथा निरपेक्ष हैं, जो सर्वज्ञ कथित आगम के अनुसार योग्य आहार-विहार से सहित हैं और जो समचित्त के धारक/राग-द्वेष से रहित हैं अर्थात् अनंतानुबंधी आदि तीन कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक वीतराग परिणाम से परिणमित हैं, वे ही महापुरुष श्रमण हैं।
भावार्थ :- छठे गुणस्थानवर्ती मुनिराज को प्रमत्तविरत श्रमण कहते हैं। वे शुभोपयोगी होते हैं। जैन मुनिराज का स्वरूप अलौकिक है। चलते-फिरते सिद्धों के समान उनकी प्रवृत्ति होती है। उनके जीवन में मात्र संज्वलन कषाय चौकड़ी ही रहती है, जिसे अमृतचन्द्राचार्य ने प्रवचनसार गाथा-५ की टीका में कणिका मात्र कहा है। इसकारण उन्हें भोगों की भावना नहीं रहती। यथायोग्य कषायोदय से आहारादिक कार्य आगमानुसार ही होते हैं और उनके भी वे मात्र ज्ञाता-दृष्टा रहते हैं, उन्हें उनमें रस नहीं रहता। समभाव ही जीवन का स्थायी भाव बन जाता है। मुनिराज के बाह्य आचरण की विशेष चर्चा मूलाचार, भगवती आराधना, अनगार धर्मामृत आदि ग्रंथों से जानना चाहिए।
इस संदर्भ में प्रवचनसार गाथा २५६ एवं इसकी दोनों टीकाओं को अवश्य देखें। अप्रमत्त अनाहारी श्रमण का स्वरूप
कषाय-विकथा-निद्रा-प्रेमाक्षार्थ-पराङ्गमुखाः। जीविते मरणे तुल्याः शत्रौ मित्रे सुखेऽसुखे ॥४१२।। आत्मनोऽन्वेषणा येषां भिक्षा येषामणेषणा।
संयता सन्त्यनाहारास्ते सर्वत्र समाशयाः ।।४१३।। अन्वय :- (ये संयता:) कषाय-विकथा-निद्रा-प्रेमाक्षार्थ (प्रेम-अक्ष-अर्थ)-पराङ्गमुखाः जीविते (च) मरणे शत्रौ मित्रे सुखे असुखे तुल्याः (भवन्ति )। येषां आत्मन: अन्वेषणा च येषां अणेषणा भिक्षा (प्रचलति), ते सर्वत्र समाशयाः संयता: अनाहाराः सन्ति ।
सरलार्थ :- जो मुनिराज क्रोधादि चार कषायों से, स्त्रीकथादि चार विकथाओं से, स्पर्शादि प्रीतिकर पाँच इन्द्रियविषयों से, निद्रा एवं स्नेहरूप इन पन्द्रह प्रमाद परिणामों से विमुख/रहित हैं अर्थात् शुद्धोपयोग में मग्न/लीन रहते हैं; जीवन-मरण, शत्रु-मित्र एवं सुख-दुःख में समताभाव/ वीतरागभाव धारण करते हैं, जो सतत आत्मा की अन्वेषणा/खोज में लगे रहते हैं (अर्थात् जो
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