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जीव अधिकार
विचार करना चाहिए; जो आगम-सम्मत हो। भूत-भावी पदार्थों को जानने का स्वरूप -
अतीता भाविनश्चार्थाः स्वे स्वे काले यथाखिलाः।
वर्तमानास्ततस्तद्वद्वेत्ति तानपि केवलम् ।।२८ ।। अन्वय :- ततः अतीताः भाविनः च अखिलाः अर्थाः स्वे स्वे काले यथा वर्तमानाः तान् अपि केवलं (केवलज्ञानं) तद्वत् वेत्ति।
सरलार्थ :- अतीत और अनागत सम्पूर्ण पदार्थ अपने-अपने काल में जिस-जिस रूप में वर्तते हैं; उनको उसी रूप में वर्तमानकालीन पदार्थों के समान केवलज्ञान जानता है।
भावार्थ :- आचार्य अमितगति भूतकालीन एवं भविष्यकालीन पदार्थों को असत् कहते हैं। इन असत् पदार्थों को केवलज्ञान वर्तमानकालीन पदार्थों के समान स्पष्ट जानता है, यह इस श्लोक में बताना चाहते हैं। जिन पदार्थों /पर्यायों की सत्ता ही नहीं उनको अस्पष्ट जानते होंगे, कछ साधनों के आधार से जानते होंगे अथवा तर्क, अनुमान से जानने का प्रयास करते होंगे - ऐसी शंकाओं को निर्मूल करने के लिए ही वर्तमानकालीन पदार्थों के समान जानते हैं; ऐसा स्पष्ट खुलासा किया है।
इसी विषय को आचार्य कुन्दकुन्द प्रवचनसार के ज्ञानाधिकार की ३९वीं गाथा में अत्यन्त विशद रूप से कहते हैं - यदि अनुत्पन्न पर्याय तथा नष्ट पर्याय केवलज्ञान को प्रत्यक्ष न हो तो उस केवलज्ञान को दिव्य ज्ञान कौन कहेगा ? इससे पूर्व की गाथा ३८ भी टीकासहित देखना उपयुक्त होगा। सब पदार्थों में केवलज्ञान के युगपत प्रवृत्त न होने पर दोषापत्ति -
सर्वेषु यदि न ज्ञानं यौगपद्येन वर्तते। तदैकमपि जानाति पदार्थं न कदाचन ।।२९।। एकत्रापि यतोऽनन्ता:पर्यायाः सन्ति वस्तुनि।
क्रमेण जानता सर्वे ज्ञायन्ते कथ्यतां कदा॥३०॥ अन्वय :- यदि ज्ञानं सर्वेषु यौगपद्येन न वर्तते तदा एकं अपि पदार्थं कदाचन न जानाति; यतः एकत्रापि वस्तुनि अनन्ता: पर्यायाः सन्ति सर्वे क्रमेण जानता कदा ज्ञायन्ते कथ्यताम् ?
सरलार्थ :- यदि केवलज्ञान सब पदार्थों को युगपत्/एकसाथ नहीं जानता है तो वह केवलज्ञान एक वस्तु को भी कभी नहीं जान सकता; क्योंकि एक वस्तु में भी अनंत पर्यायें होती हैं। क्रम से जानते हुए वे सब पर्यायें कबतक जानी जायेंगी सो बतलाओ? एक वस्तु के पर्यायों का भी अंत नहीं आने से कभी एक वस्तु का भी पूरा-जानना नहीं हो सकेगा।
भावार्थ :- प्रत्येक वस्तु अनादि-अनंत नित्य है और उसमें प्रतिसमय नयी-नयी पर्याय भी होती रहती है अर्थात् वस्तु अपने में नित्यता के साथ अनित्यता को भी स्वीकारती है। इसी तथ्य को आचार्य उमास्वामी 'गुणपर्ययवद् द्रव्यम्' (तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५, सूत्र ३८) - इस सूत्र में
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