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इनको स्पष्ट जानता है।
अन्तरित अर्थात् काल की अपेक्षा जिनमें विशेष दूरी है, ऐसे राम-रावण, वृषभादि तीर्थंकर, भूतकालीन चौबीसी, भविष्यकालीन चौबीसी - इनका जानना केवलज्ञान में सहज होता है।
योगसार प्राभृत
क्षेत्र की अपेक्षा से दूर स्वयंभूरमण समुद्र, सुदर्शन आदि मेरु पर्वत, अकृत्रिम जिन चैत्यचैत्यालय - इनको भी केवलज्ञान सहज जान लेता है। सभी भूत, भविष्यत् पदार्थों को भी क्षायिकज्ञान वर्तमानवत् एवं स्पष्ट जानता है ।
आचार्यश्री माणिक्यनंदी परीक्षामुखसूत्र “नार्थालोकौ कारणं परिच्छेद्यत्वात्तमोवत्" इस सूत्र में अल्पज्ञ जीव का ज्ञान भी अर्थ अर्थात् ज्ञेयवस्तु और आलोक अर्थात् प्रकाशादि निमित्त के बिना ही होता है ऐसा कहते हैं; तो केवलज्ञान सत्-असत् वस्तुओं को भी स्पष्ट जानता है, इसमें क्या आश्चर्य है ?
केवलज्ञान के विषय की चर्चा करते हुए आचार्य उमास्वामी ने भी तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय के २९वें सूत्र में ‘सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य' अर्थात् केवलज्ञान जाति अपेक्षा छहों तथा संख्या अपेक्षा अनंतानंत द्रव्य एवं उनकी सर्व पर्यायों को युगपत् जानता है, यह स्पष्ट किया है ।
अतः केवलज्ञान को छोड़कर अन्य कोई ज्ञान सर्वोत्तम नहीं है; यह तो सहज ही समझ में आता है ।
इस विषय की विशेष जानकारी हेतु प्रवचनसार गाथा ३७ एवं उसकी टीका अवश्य देखें । सत्-असत् पदार्थों का खुलासा
असन्तस्ते मता दक्षैरतीता भाविनश्च ये 1
वर्तमाना: पुन: सन्तस्त्रैलोक्योदरवर्तिनः ।। २७ ।।
अन्वय :- दक्षैः ये त्रैलोक्योदर - वर्तिनः अतीताः भाविन: च (पदार्थाः) ते असन्त: पुन: वर्तमानाः सन्तः मताः ।
सरलार्थ :- जो पदार्थ तीन लोक के उदर में भूतकाल में थे और भविष्यकाल में रहेंगे, उन्हें विवेकी पुरुष असत् मानते हैं । तथा जो पदार्थ वर्तमान काल में हैं, उन्हें सत् मानते हैं ।
द्रव्य,
भावार्थ :• वस्तुतः वर्तमानकाल तो एक समय का होता है। इस वर्तमान काल में अनंतानंत प्रत्येक द्रव्य में अनंत गुण और प्रत्येक गुण की वर्तमानकालीन एक समय की एक-एक पर्याय - इतना वर्तमानकालीन सत् पदार्थ है तथा भूतकालीन विनष्ट पर्यायों एवं भविष्यकालीन अनुत्पन्न पर्यायों को असत् (अविद्यमान) कहते हैं ।
वर्तमानकाल की अपेक्षा भूतकाल अनंतगुणा है; क्योंकि भूतकाल अनादि का है । भविष्यकाल, भूतकाल की अपेक्षा सदा ही अनंत गुणा रहता है; इसतरह सत्-असत् पदार्थों का सूक्ष्मता से
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