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अपि दुरितानि इव ज्ञानं न गच्छति ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार अशुद्ध सुवर्ण को शुद्ध करते समय सुवर्ण में से अशुद्धता नष्ट होती है; तथापि सुवर्ण नष्ट नहीं होता, उसीप्रकार मुक्तात्मा / सिद्धात्मा के ज्ञानावरणादि आठों कर्मों के नाश के समान सिद्धों के ज्ञान गुण का नाश नहीं होता।
भावार्थ :- यदि कोई वैशेषिक मत का पक्ष लेकर यह कहे कि मुक्त आत्मा के जिसप्रकार कर्म नष्ट होते हैं, उसीप्रकार ज्ञानगुण भी नष्ट हो जाता है, तो यह कथन भी ठीक नहीं। सुवर्ण का दृष्टान्त स्पष्ट है।
गुणों के अभाव से गुणी का अभाव
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योगसार प्राभृत
न ज्ञानादि-गुणाभावे जीवस्यास्ति व्यवस्थितिः ।
लक्षणापगमे लक्ष्यं न कुत्राप्यवतिष्ठते ।। ३२४।।
अन्वय :- जीवस्य ज्ञानादि-गुणाभावे ( जीवस्य ) व्यवस्थिति: न अस्ति; लक्षणापगमे लक्ष्यं कुत्र अपि न अवतिष्ठते ।
सरलार्थ :- जीव के ज्ञान- दर्शनादि गुणों का अभाव मान लेने पर जीव द्रव्य की उपस्थिति/ सत्ता नहीं रह सकती; क्योंकि ज्ञानरूप लक्षण का अभाव होनेपर जीवरूप लक्ष्य कहीं नहीं ठहरता है ।
भावार्थ :- वास्तव में ज्ञानादि गुणों का अभाव होने पर तो जीव की कोई व्यवस्थिति ही नहीं बनती; क्योंकि ज्ञान-दर्शन गुण जीव के लक्षण हैं; जैसा कि जीवाधिकार में बताया जा चुका है। लक्षण का अभाव होने पर लक्ष्य का फिर कोई अस्तित्व नहीं बनता। ऐसी स्थिति में वैशेषिकों ने बुद्ध्यादि वैशेषिक गुणों के उच्छेद को मोक्ष माना है, वह तर्क-संगत मालूम नहीं होता - उनके यहाँ तब जीव का अस्तित्व भी नहीं बनता । गुणों का अभाव हो जाय और गुणी बना रहे यह कैसे हो सकता है ? - नहीं हो सकता ।
कर्मबंध को मात्र जानने से मुक्ति नहीं
विविधं बहुधा बन्धं बुध्यमानो न मुच्यते ।
कर्म - बद्धो विनोपायं गुप्ति - बद्ध इव ध्रुवम् ।। ३२५ ।।
अन्वय :- गुप्ति - बद्धः इव कर्म - बद्ध: विविधं बन्धं बहुधा बुध्यमान: (अपि) उपायं विना न मुच्यते ध्रुवम् ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार कारागृह में पडा हुआ बंदी / कैदी “मैं कारागृह में कैद हूँ" इसप्रकार मात्र जानने से कारागृह से मुक्त नहीं होता; उसीप्रकार ज्ञानावरणादि कर्मों से बंधा हुआ संसारी जीव अनेक प्रकार के कर्म-बंधनों को बहुधा / अनेक प्रकार से मात्र जानता हुआ कर्मों से छूटने का वास्तविक उपाय किये बिना मुक्त नहीं होता, यह निश्चित है।
भावार्थ :- समयसार गाथा २८८ से २९१ पर्यंत इन चार गाथाएँ एवं इन गाथाओं की टीका तथा भावार्थ को सूक्ष्मता से देखने पर ग्रंथकार का अभिप्राय विशदरूप से समझ में आयेगा ।
[C:/PM65/smarakpm65 / annaji/yogsar prabhat.p65/210]