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________________ १६५ उत्तर : • यहाँ निश्चय षडावश्यक क्रियाओं को ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि अप्रमत्तादि गुणस्थानों में व्यवहार षडावश्यक पालने का बुद्धिपूर्वक क्रियात्मक रागभाव का अस्तित्व ही नहीं I संवर अधिकार आत्मज्ञानी ही संवर करते हैं, अन्य नहीं - मिथ्याज्ञानं परित्यज्य सम्यग्ज्ञानपरायणः । आत्मनात्मपरिज्ञायी विधत्ते रोधमेनसाम् ।। २४४ । । अन्वय :- मिथ्याज्ञानं परित्यज्य सम्यग्ज्ञानपरायणः, आत्मना आत्म-परिज्ञायी (योगी) एनस रोधं विधत्ते । सरलार्थ :- मिथ्याज्ञान का विशेषरूप से त्याग कर जो साधक सम्यग्ज्ञान में तत्पर अर्थात् आत्मज्ञान में लीन रहते हैं तथा आत्मा से आत्मा को जानते हैं, वे कर्मों का निरोध अर्थात् संवर करते हैं । भावार्थ :- - साक्षात् सर्वज्ञ बनने के पूर्व की अवस्था अर्थात् क्षीणमोह गुणस्थानवर्ती जीव के लिये इस श्लोक का कथन लागू होता हुआ प्रतीत होता है। आगे के श्लोकों से भोजक - अभोजकरूप से विषय की भिन्नता भी स्पष्ट है । अतः सर्वज्ञ होने से पूर्व साधक के अंतिम अवस्थारूप का वर्णन होना भी स्वाभाविक लगता है। सामान्य अपेक्षा से सोचा जाय तो भूमिकानुसार चौथे गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान पर्यंत भी अथवा अपूर्वकरण से क्षीणमोह गुणस्थान पर्यंत भी कर्मों के संवर की बात लागू हो सकती है। भोक्ता - अभोक्ता का निर्णय - द्रव्यतो भोजकः कश्चिद्भावतोऽस्ति त्वभोजकः । भावतो भोजकस्त्वन्यो द्रव्यतोऽस्ति त्वभोजकः ।। २४५ ॥ अन्वय : • कश्चित् (ज्ञानी जीव:) द्रव्यत: भोजक: भावत: तु अभोजकः अस्ति । अन्यः ( अज्ञानी जीव: ) तु भावत: भोजक: द्रव्यत: तु अभोजकः अस्ति । सरलार्थ:• कोई ज्ञानी जीव द्रव्य से भोक्ता है, वही जीव भाव से अभोक्ता है। दूसरा मिथ्यादृष्टि/अज्ञानी जीव भाव से भोक्ता है और वही जीव द्रव्य से अभोक्ता है। भावार्थ :- जो जीव किसी पदार्थ के भोग में प्रवृत्त है उसे 'भोजक' और जो भोग से निवृत्त है उसे 'अभोजक' कहते हैं । यहाँ द्रव्य तथा भाव से भोजक - अभोजक की व्यवस्था बताते हुए यह सूचित किया है कि जो द्रव्य से भोजक है, वह भाव से भी भोजक हो अथवा जो भाव से भोजक है, वह द्रव्य से भी भोजक हो, ऐसा कोई नियम नहीं है। एक ज्ञानीजीव बाह्य में द्रव्य से भोजक होते हुए भी भाव से भोजक नहीं होता और दूसरा अज्ञानी भाव से भोजक होते हुए भी बाह्य में द्रव्य से भोज नहीं होता । [C:/PM65/smarakpm65 / annaji/yogsar prabhat.p65/165]
SR No.008391
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size920 KB
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