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संवर अधिकार
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अन्वय :- इति तयोः (आत्म-शरीरयो: भेदं) विज्ञाय सदा स्वं द्रव्यं (स्वं)परं-परं, मन्यते, स: आत्म-तत्त्वरत: योगी संवरं विदधाति ।
सरलार्थ :- इसप्रकार व्यवहार तथा निश्चयनय की दृष्टि से आत्मा और शरीरादि दोनों के भेद को जानकर जो योगी सदा स्वद्रव्य को स्व के रूप में और परद्रव्य को पर के रूप में मानते हैं, वे आत्मतत्त्व में लीन हुए योगी सदा संवर करते हैं/अर्थात् कर्मों के आस्रव को रोकते हैं।
भावार्थ :- श्लोकगत आत्मतत्त्वरत योगी सदा संवर करते हैं; ऐसा कथन जानकर कोई शंका कर सकता है कि जो योगी आहार-ग्रहण करने में लगे हैं, क्या उन्हें आहार लेते समय भी संवर होता रहता है?
उसका समाधान :- हाँ, उन्हें आहार के काल में भी संवर तो होता ही रहता है, इतना ही नहीं, उन्हें भूमिका के अनुसार निर्जरा भी होती ही रहती है। जितनी मात्रा में अर्थात् तीन कषाय चौकडी के अभावपूर्वक जो वीतरागपरिणति प्रगट है, उतनी मात्रा में उन्हें निश्चय चारित्र है और उससे मुनिराज वास्तविक सुखी भी हैं। आहार-ग्रहण करने का परिणाम तो अशुद्धोपयोगरूप है, और उससे उन्हें आस्रव-बन्ध होता है और उसी समय उन्हें जो शुद्धपरिणति है, उससे संवर-निर्जरा भी होती हैं।
इसीतरह चौथे-पाँचवें गुणस्थानवर्ती श्रावक को भी मिश्र परिणाम के कारण आस्रव, बन्ध, संवर और निर्जरा ये चारों तत्त्व भूमिका के अनुसार सदा रहते हैं; क्योंकि सम्यग्दृष्टि आदि जीवों को सदा शुद्धपरिणति अर्थात् वीतरागता भूमिकानुसार यथायोग्य मात्रा में रहती ही है। पर्याय-अपेक्षा से कर्मफल भोगने का स्वरूप -
विदधाति परो जीव: किंचित्कर्म शुभाशुभम् ।
पर्यायापेक्षया भुङ्क्ते फलं तस्य पुनः परः ।।२१३।। अन्वय :- पर्याय-अपेक्षया परः (एक:) जीव: किंचित् शुभ-अशुभं कर्म विदधाति पुनः परः (अन्य: जीव:) तस्य फलं भुङ्क्ते।
सरलार्थ :- पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से अन्य जीव कुछ शुभ-अशुभ कर्म करता है और उसका फल अन्य जीव भोगता है। ___ भावार्थ :- इस श्लोक में पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से किसी के किये हुए शुभ-अशुभ कर्मों के फल का भोक्ता कौन है - इस विषय को स्पष्ट करते हुए बतलाया है कि पर्याय की अपेक्षा से तो एक जीव कर्म करता है और दूसरा जीव उसके फल को भोगता है, जैसे मनुष्य जीव ने संयम-तप आदि के द्वारा पुण्योपार्जन किया और देव जीव ने उसके फल को भोगा/पर्यायदृष्टि से मनुष्य जीव और देव जीव अलग-अलग हैं।
[C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/147]