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बन्ध अधिकार
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अनुष्ठान/आचरण में प्रीतिरूप भाव, ये सर्व परिणाम पुण्यबन्ध के कारण हैं।
भावार्थ :- यहाँ पुण्य-बन्ध के कारणों का निर्देश करते हुए उन्हें मुख्यतः तीन प्रकार का बतलाया है। पहला अर्हन्तादि की उत्कृष्ट भक्ति, दूसरा सब प्राणियों के प्रति करुणाभाव (दया परिणाम - अहिंसाभाव) और तीसरा पवित्र चारित्र के पालन में अनुराग।
यहाँ अरहन्त के साथ प्रयुक्त ‘आदि' शब्द प्रधानतः सिद्धों का और गौणतः उन आचार्य, उपाध्याय तथा साधु परमेष्ठियों का वाचक है, जो भावलिंगी हों, द्रव्यलिंगी अथवा भवाभिनन्दी न हों और अपने-अपने पद के सब गुणों में यथार्थतः परिपूर्ण हों।
भक्ति का ‘परा' विशेषण ऊँचे अथवा उत्कृष्ट अर्थ का वाचक है और इस बात का सूचक है कि यहाँ सातिशय उत्कृष्ट पुण्य-बन्ध के कारणों का निर्देश है। ___पंचास्तिकाय संग्रह गाथा १६६ भी बहुत कुछ इस विषय को स्पष्ट करनेवाली है; जो निम्नानुसार
अरहन्तसिद्धचेदियपवयणगणणाणभत्तिसंपण्णो।
बंधदि पुण्णं बहुसो ण हु सो कम्मक्खयं कुणदि। गाथार्थ :- अहँत, सिद्ध, चैत्य (अरहंतादि की प्रतिमा), प्रवचन (शास्त्र), मुनिगण और ज्ञान के प्रति भक्तिसम्पन्न जीव बहुत पुण्य बाँधता है; परन्तु वास्तव में वह कर्म का क्षय नहीं करता।
इसप्रकार अरहन्तादिक की सर्वोत्तम भक्ति भी मुक्ति का कारण नहीं है; मात्र बहुत पुण्य का कारण है, इसी विषय को आचार्य अमितगति ने इस श्लोक में बताया है।
प्रवचनसार में शुभोपयोग का लक्षण बताते समय आचार्य कुन्दकुन्द ने गाथा १५७ में भी यही भाव प्रगट किया है। पापबन्ध के कारण -
निन्दकत्वं प्रतीक्ष्येषु नैघृण्यं सर्वजन्तुषु ।
निन्दिते चरणे रागः पाप-बन्ध-विधायकः ।।१८७।। अन्वय :- प्रतीक्ष्येषु (अर्हत्-आदि पूज्येषु) निन्दकत्वं, सर्व-जन्तुषु नैघृण्यं, (च) निन्दिते चरणे राग: पाप-बन्ध विधायकः (भवति)।
सरलार्थ :- अरहन्तादि पूज्य पुरुषों के सम्बन्ध में निन्दा का परिणाम, सर्व प्राणियों के प्रति निर्दयता का भाव और सप्त व्यसन, तीव्र हिंसादि पापरूप चारित्र संबंधी प्रीतिरूप भाव अर्थात् बहुमान की प्रवृत्ति - ये सब पाप का बन्ध करनेवाले हैं।
भावार्थ :- यहाँ पाप-बन्ध के कारणों का उल्लेख करते हुए उन्हें भी तीन प्रकार का बतलाया है - एक इष्टों-पूज्यों के प्रति निन्दा का भाव, दूसरा सब प्राणियों पर निर्दयता/हिंसा का भाव और तीसरा निन्दित चारित्र में अनुराग।
प्रवचनसार की गाथा १५८ में अशुभोपयोग की परिभाषा भी इसी विषय को स्पष्ट करती है -
[C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/133]