SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शलाका पुरुष भाग-२से ११० यदिचूक गये तो सातों व्यसन त्याज्य हैं। व्यसनों में उलझना तो सहज है, पर एक बार उलझने के बाद सुलझना महादुर्लभ हो जाता है, इनको एक बार पकड़ने पर ये पकड़ने वाले को ऐसा जकड़ते हैं कि जीते जी छूटना संभव नहीं रहता। बस यही इनका व्यसनपना है। बुरी प्रवृत्तियों की जब ऐसी आदत पड़ जावे कि राजदण्ड-लोकनिन्दा व सामाजिक बहिष्कार की स्थिति आ जाने पर भी न छोड़े जा सकें, तब वे पाप कार्य व्यसन बन जाते हैं और जो पापकार्य अज्ञानदशा में हो जाने पर भी माता-पिता, गुरुजन के उपदेश से या परभव के भय से छूट जाते हैं, वे पाप की सीमा में ही रहते हैं, व्यसनों की श्रेणी में नहीं आते। हे भव्य! रात्रि भोजन में प्रत्यक्ष में ही भारी दोष दृष्टिगोचर होते हैं, उन पर गंभीरता से विचार करके रात्रि भोजन का त्याग करो। रात्रि भोजन से इहभव में तो हम नाना बीमारियों से बचेंगे ही, पुनर्जन्म में भी सभी प्रकार के उत्तमोत्तम सुखों की प्राप्ति होगी। जो व्यक्ति रात्रि में भोजन करता है, उसके निमित्त से रात्रि में भोजन बनाना भी पड़ता है और रात्रि में भोजन बनाने से दिन की अपेक्षा अनेक गुणी अधिक हिंसा होती है; क्योंकि रात्रि में सूक्ष्म जीवों का संचार अधिक होता है, दिन में जो जीव-जन्तु सूर्य के प्रकाश व प्रपात के कारण सोये रहते हैं, घर के अंधेरे कोने में बैठे रहते हैं, वे सूर्यास्त होते ही अपना भोजन ढूँढने के लिए निकल पड़ते हैं। इधर-उधर संचार करते हुए कीड़े-मकोड़े एवं उड़नेवाले सूक्ष्म जीव हमें रात में सहजता से दिखाई नहीं देते। उनमें से बहुत कुछ दिख भी जाते हैं। बिजली के बल्बों पर, ट्यूबलाइटों पर एवं दीपक आदि के ऊपर पतंगा आदि को उछलते-गिरते पड़ते और मरते किसने नहीं देखा? सूर्यास्त होने पर मच्छरों का तो बोलबाला होता है, उससे तो बच्चा-बच्चा परिचित है ही। जहाँ देखो, वहीं ढेरों मच्छर भिन्न-भिनाते मिल जायेंगे। रात्रि में भोजन बनाने के लिए जो आग जलाई जाती है, उससे आकर्षित होकर भी छोटे-छोटे जीव-जन्तु भोजन-सामग्री में गिरते-पड़ते रहते हैं। उन सबके घात से हिंसा जैसा महापाप तो होता ही है, अनेक शारीरिक भयंकर व्याधियाँ बीमारियाँ भी हो जाती हैं। कीड़ी (चीटी) बुद्धिबल को क्षीण करती है, कसारी नामक कीड़ा कम्प रोग पैदा करता है, मकड़ी से कुष्ट रोग होता है। रात्रि में भोजन बनाते एवं खाते समय इनके गिर जाने की अधिक संभावना है, अतः रात्रि भोजन त्याज्य है। घु नामक कीड़ा, जो बालों में होता है, उसके पेट में चले जाने से जलोदर नामक रोग हो जाता है। गले में फाँस लगी हो - ऐसी पीड़ा होती है। यदि पेट में बाल चला जाये तो कंठ का स्वर भंग हो जाता है। मक्खी पेट में जाते ही वमन (उल्टी) हो जाती है। यदि बिच्छू पेट में पहुँच जाये तो तालू में छेद हो जाता है। ये तो रात्रि भोजन के प्रगट दोष हैं; इनके अतिरिक्त और भी बहुत दोष हैं, जिनका वर्णन यथास्थान है ही। ___इतना ही नहीं और भी अनेक पदार्थ हैं, जो रात्रि भोजन में सहज ही हमारे खाने-पीने में आ जाते हैं और हमारी मौत के कारण बन जाते हैं। जिसप्रकार कमल पुष्प सूर्य प्रकाश में ही खिलता है, विकसित होता है, प्रफुलित होता है, उसीप्रकार उदर स्थित कमल नाड भी अर्थात् आहार थैली भी सूर्यप्रकाश में पूर्णतः खुली और सक्रिय रहती है तथा सूर्यास्त होते ही कमल के फूल की भाँति ही उदर स्थित कमल नाड (आहार थैली) भी संकुचित हो जाती है, निष्क्रिय हो जाती है। पशु दो प्रकार के होते हैं एक - दिन भोजी, दूसरे - रात्रि भोजी । उनमें एक विशेषता यह होती है कि जो रात में खाते हैं, वे दिन में नहीं खाते और जो दिन में खाते हैं वे रात में नहीं खाते। वे अपने नैसर्गिक (प्राकृतिक)
SR No.008389
Book TitleYadi Chuk Gaye To
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size276 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy