SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शलाका पुरुष भाग-२ से १०७ १०६ यदिचूक गये तो मन का निर्मल हो जाना व पाप भावों से बचे रहना ही जिनभक्ति का सच्चा फल है। दर्शन-पूजन का यही असली प्रयोजन है। जिनबिम्ब दर्शन, सम्यग्दर्शन का निमित्त तो है ही - सातिशय पुण्य बन्ध का कारण भी है और अतिशय पुण्य का फल भी है। सातिशय पुण्योदय के बिना जिनेन्द्रदेव के दर्शनों का लाभ, उनकी भवोच्छेदक वाणी सुनने का सौभाग्य भी नहीं मिलता। जिनेन्द्र का भक्त सदा यही भावना भाता है कि मेरे हृदय में सदैव जिनदेव की भक्ति बनी रहे; क्योंकि यह सम्यक्त्व एवं मोक्ष का भी कारण है। भगवान जिनेन्द्रदेव की भक्ति मेरे हृदय में सदा उत्पन्न हो; क्योंकि यह संसार का नाश करनेवाले और मोक्ष प्राप्त करनेवाले और मोक्षप्राप्त करानेवाले सम्यग्दर्शन को प्राप्त कराने में सनिमित्त है। -- भव्यजीवों के द्वारा प्रातः उठकर अपने शरीर की उत्तम प्रकार से शुद्धि करके जिनबिम्ब के दर्शन किए जाते हैं; क्योंकि जो जीव प्रतिदिन प्रातःकाल शारीरिक शुद्धि करके सर्वप्रथम जिनबिम्ब का दर्शन करते हैं, वे भव्य अल्पकाल में मुक्ति प्राप्त करेंगे। -- -- जिनेन्द्रदेव के मुखारबिन्द के दर्शन करने से आत्मा के स्वरूप में रुचि जाग्रत हो जाती है, अपने आत्मा की अनन्त सामर्थ्य स्वरूप सर्वज्ञ भगवान की प्रतीति आ जाती है, अपने व पराये की पहचान हो जाती है। सम्यग्ज्ञानरूपी सूर्य का उदय हो जाने से मोहरूप अंधियारी रात्रि का नाश हो जाता है। जो भव्यजीव जिन स्तवन करके, सामायिक की शुद्धि करके, पंचकल्याणक की स्तुति करके, पंच नमस्कार मंत्र को हृदय में धारण करके, चैतन्य स्तुति करके, सिद्ध भक्ति करके श्रुत व गुरु की भक्ति करता है, वह सांसारिक सुख को प्राप्त करता हुआ मोक्षसुख को प्राप्त करता है। जो पुरुष श्री जिनेन्द्रदेव के आकारवाला जिनबिम्ब बनवाकर स्थापित करता है, श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा व स्तुति करता है - उसके कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता। जिनेन्द्र भगवान का भक्त भव्य जीव अपार महिमा के धारक इन्द्रपद को, सब राजाओं से पूजित चक्रवर्तीपद को और तीनलोक से पूजित तीर्थंकर पद को प्राप्त करके सिद्धपद की प्राप्ति करता है। ____ जब कोई व्यक्ति जिनेन्द्रदेव के दर्शनार्थ जाने का मन में विचार करता है, तब वह उस विचार मात्र में एक उपवास के फल को प्राप्त कर लेता है तथा जब वह चलने को तैयार होता है तो उसके परिणाम और अधिक विशुद्ध होने से वह दो उपवास के फल का भागी होता है। और जब वह गमन करने का उपक्रम करता है, तब उसे तीन उपवास जितना पुण्य लाभ होता है। गमन करने पर चार उपवास का, मार्ग में पहुँचने पर एक पक्ष के उपवास का, जिनालय के दर्शन होने पर एक मास के उपवास का, जिनालय में पहुंचने पर छह मास के उपवास का, मन्दिर की देहली पर पहुँचते ही एक वर्ष का जिनेन्द्र की प्रदक्षिणा करने पर सौ उपवास का, नैत्रों से साक्षात् जिनेन्द्र के दर्शन करने पर हजार उपवास का फल मिलता है। -- जो प्रतिदिन जिनेन्द्रदेव का दर्शन नहीं करते, उनके गुणों का स्मरण नहीं करते, पूजन स्तवन नहीं करते तथा मुनिजनों को दान नहीं देते, उनका गृहस्थाश्रम में रहना पत्थर की नाव के समान है। वे गहरे भव समुद्र में डूबते हैं - नष्ट होते हैं। (५४)
SR No.008389
Book TitleYadi Chuk Gaye To
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size276 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy