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________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक जीवस्स णत्थि वग्गो ण वग्गणा व फड्ढया केई। णो अज्झप्पट्ठाणा व य अणुभागठाणाणि ।। ना वर्ग है ना वर्गणा अर कोई स्पर्धक नहीं। अर नहीं है अनुभाग के अध्यात्म के स्थान भी ।। जीव के वर्ग नहीं है, वर्गणा नहीं है, स्पर्धक नहीं है, अध्यात्मस्थान नहीं है और अनुभागस्थान नहीं है। (३४) जीवस्स णत्थि केई जोयट्ठाणा ण बंधठाणा वा। णेव य उदयट्ठाणा ण मग्गणट्ठाणया केई ।। योग के स्थान नहिं अर बंध के स्थान ना। उदय के स्थान नहिं अर मार्गणा स्थान ना ।। जीव के योगस्थान नहीं है, बंधस्थान नहीं है, उदयस्थान नहीं है, और मार्गणास्थान नहीं है। (३६) णेव य जीवट्ठाणा ण गुणट्ठाणा य अस्थि जीवस्स । जेण दु एदे सव्वे पोग्गलदव्वस्स परिणामा ।। जीव के स्थान नहिं गुणथान के स्थान ना। क्योंकि ये सब भाव पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं ।। इस जीव के जीवस्थान भी नहीं हैं, और गुणस्थान भी नहीं है; क्योंकि ये सब भाव पुद्गलद्रव्य के परिणाम हैं। (३७) पुव्वुत्तसयलभावा परदव्वं परसहावमिदि हेयं । सगदव्वमुवादेयं अंतरतच्चं हवे अप्पा ।। हैं हेय ये परभाव सब ही क्योंकि ये परद्रव्य हैं। आदेय अन्तःतत्त्व आतम क्योंकि वह स्वद्रव्य है ।। पूर्वोक्त सम्पूर्ण भाव परद्रव्य हैं, परभाव हैं; इसलिए हेय हैं। अंतस्तत्त्व आत्मा स्वद्रव्य है, अतः उपादेय है। (३८) अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसई । सगदव्वमुवादेयं अंतरतच्चं हवे अप्पा ।। चैतन्य गुणमय आतमा अव्यक्त अरस अरूप है। जानो अलिंगग्रहण इसे यह अनिर्दिष्ट अशब्द है।। भगवान आत्मा में न रस है, न रूप है, न गंध है और न शब्द है; अतः यह आत्मा अव्यक्त है, इन्द्रियग्राह्य नहीं है। हे भव्यो! किसी भी लिंग से ग्रहण न होनेवाले, चेतना गुणवाले एवं अनिर्दिष्ट (न कहे जा सकनेवाले) संस्थान (आकार) वाले इस भगवान आत्मा को जानो। (३५) णो ठिदिबंधट्ठाणा जीवस्स ण संकिलेसठाणा वा। णेव विसोहिट्ठाणा णो संजमलद्धिठाणा वा ।। थिति बंध के स्थान नहिं संक्लेश के स्थान ना। संयमलब्धि के स्थान ना सुविशुद्धि के स्थान ना ।। जीव के स्थितिबंधस्थान भी नहीं हैं, संक्लेशस्थान भी नहीं है, विशद्धिस्थान भी नहीं है, और संयमलब्धिस्थान भी नहीं हैं। ३४.समयसार गाथा ५३ ३७. समयसार गाथा ५० ३३. समयसार गाथा ५२ ३५. समयसार गाथा ५४ ३६.समयसार गाथा ५५ ३८. समयसार गाथा १२०
SR No.008380
Book TitleShuddhatma shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size66 KB
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