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________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक (३०) (२७) पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी । मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई ।। पथिक लुटते देखकर पथ लुट रहा जग-जन कहें। पर पथ तो लुटता है नहीं बस पथिक ही लुटते रहें ।। जिसप्रकार पथिक को लुटता हुआ देखकर व्यवहारीजन कहते हैं कि यह मार्ग लुटता है; किन्तु परमार्थ से विचार किया जाय तो मार्ग नहीं लुटता, मार्ग में जाता हुआ मनुष्य ही लुटता है। जीवो चेव हि एदे सव्वे भाव त्ति मण्णसे जदि हि । जीवस्साजीवस्स य ात्थ विसेसो दु दे कोई ।। वर्णादिमय ही जीव हैं तुम यदी मानो इसतरह । तब जीव और अजीव में अन्तर करोग किसतरह ।। यदि तुम ऐसा मानोगे कि यह सब वर्णादि भाव जीव ही हैं तो तुम्हारे मत में जीव और अजीव में कोई अन्तर नहीं रहता है। (२८) तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च पस्सिदुं वण्णं । जीवस्स एस वण्णो जिणेहिं ववहारदो उत्तो ।। उस ही तरह रंग देखकर जड़कर्म अर नोकर्म का। जीनवर कहें व्यवहार से यह वर्ण है इस जीव का ।। उसीप्रकार जीव में कर्मों और नोकर्मों का वर्ण देखकर जीव का यह वर्ण है - इसप्रकार व्यवहार से जिनेन्द्रदेव ने कहा। (३१) जीवस्स णत्थि वण्णो ण वि गंधो ण वि रसोण वि य फासो। ण वि रूवं ण सरीरं ण वि संठाणं ण संहणणं ।। शुध जीव के रस गंध ना अर वर्ण ना स्पर्श ना। यह देह ना जड़रूप ना संस्थान ना संहनन ना ।। जीव के वर्ण नहीं हैं, रस भी नहीं है, स्पर्श भी नहीं हैं, रूप भी नहीं है, शरीर भी नहीं है, संस्थान भी नहीं है और संहनन भी नहीं है। (२९) गंधरसफासरूबा देहो संठाणमाइया जे य। सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति ।। इस तरह ही रस गंध तन संस्थान आदिक जीव के। व्यवहार से हैं - कहें वे जो जानते परमार्थ को ।। इसीप्रकार निश्चयनय के जानकारों ने गंध, रस, स्पर्श, रूप, देह, संस्थान आदि को व्यवहार से जीव के कहे हैं। (३२) जीवस्स णत्थि रागो ण वि दोसो व विज्जदे मोहो । ण पच्चया ण कम्मं णोकम्मं चावि से णत्थि ।। ना राग है ना द्वेष है ना मोह है इस जीव के । प्रत्यय नहीं है कर्म ना नोकर्म ना इस जीव के ।। इस जीव के राग भी नहीं है, द्वेष भी नहीं है, मोह भी नहीं है, प्रत्यय भी नहीं है, कर्म भी नहीं है और नोकर्म भी नहीं है। २८.समयसार गाथा ५९ ३१.समयसार गाथा ५० २७. समयसार गाथा ५८ २९.समयसार गाथा ६० ३०.समयसार गाथा ६२ ३२. समयसार गाथा ५१
SR No.008380
Book TitleShuddhatma shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size66 KB
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