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________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक (२१) उदयविवागो विविहो कम्माणं वण्णिदो जिणवरेहिं । ण दु ते मज्झ सहावा जाणगभावो दु अहमेक्को ।। उदय कर्मों के विविध-विध सूत्र में जिनवर कहे। किन्तु वे मेरे नहीं मैं एक ज्ञायकभाव हूँ।। जिनेन्द्र भगवान ने कर्मों के उदय का विपाक (फल) अनेक प्रकार का कहा है; किन्तु वे मेरे स्वभाव नहीं है, मैं तो एक ज्ञायकभाव ही हूँ। (२४) सव्वण्हुणाणदिट्ठो जीवो उवओगलक्खणो णिच्चं । कह सो पोग्गलदव्वीभूदो जं भणसि मज्झमिणं ।। सर्वज्ञ ने देखा सदा उपयोग लक्षण जीव यह । पुद्गलमयी हो किसतरह किसतरह तू अपना कहे? ।। उसे समझाते हुए आचार्य देव कहते हैं कि सर्वज्ञ भगवान के ज्ञान द्वारा देखा गया जो सदा उपयोग लक्षण वाला जीव है, वह पुद्गलद्रव्यरूप कैसे हो सकता है, जिससे कि तू यह कह सके कि यह पुद्गलद्रव्य मेरा है। (२५) जदि सो पोग्गलदव्वीभूदो जीवत्तमागदं इदरं । तो सक्को वत्तुं जे मज्झमिणं पोग्गलं दव्वं ।। जीवमय पुद्गल तथा पुद्गलमयी हो जीव जब । ये मेरे पुद्गल द्रव्य हैं - यह कहा जा सकता है तब ।। यदि जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्यरूप हो जाय और पुद्गलद्रव्य जीवरूप हो जाय तो तू कह सकता है कि यह पुद्गलद्रव्य मेरा है। (२२) पोग्गलकम्मं रागो तस्य विवागोदओ हवदि एसो। ण दु एस मज्झ भावो जाणगभावो हु अहमेक्को ।। पुद्गल करम है राग उसके उदय ये परिणाम हैं। किन्तु ये मेरे नहीं मैं एक ज्ञायकभाव हूँ।। राग पुद्गलकर्म है, उसके विपाकरूप उदय ये भाव हैं और ये भाव मेरे नहीं है; क्योंकि मैं तो निश्चय से एक ज्ञायकभाव ही हूँ। (२३) अण्णाणमोहिदमदी मज्झमिणं भणदि पोग्गलं दव्वं । बद्धमबद्धं च तहा जीवो बहुभाव संजुत्तो ।। अज्ञानमोहितमती बहुविध भाव से संयुक्त जिय । अबद्ध एवं बद्ध पुद्गल द्रव्य को अपना कहें।। जिसकी मति अज्ञान से मोहित है और जो राग-द्वेष-मोह आदि अनेक भावों से युक्त है - ऐसा जीव कहता है कि ये शरीरादि बद्ध और धन-धान्यादि अबद्ध पुद्गल द्रव्य मेरे हैं। (२६) एदेहिं य सम्बन्धो जहेव खीरोदयं मुणेदव्वो । ण य होंति तस्स ताणि दु उवओगगुणाधिगो जम्हा ।। दूध-पानी की तरह सम्बन्ध इनका जानना। उपयोगमय इस जीव के परमार्थ से ये हैं नहीं ।। इन वर्णादिक भावों के साथ जीव का संबंध दूध और पानी की तरह एक क्षेत्रावगाह रूप संयोग सम्बन्ध है - ऐसा जानना चाहिए। ये सभी भाव जीव के नहीं हैं; क्योंकि जीव में उनसे उपयोग गुण अधिक हैं। २२. समयसार गाथा १९९ २५. समयसार गाथा २५ २१.समयसार गाथा १९८ २३.समयसार गाथा २३ २४. समयसार गाथा २४ २६.समयसार गाथा ५७
SR No.008380
Book TitleShuddhatma shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size66 KB
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