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________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक (६३) णिग्गंथो णीरागो णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मुक्को । णिक्कामो णिक्कोहो णिम्माणो णिम्मदो अप्पा ।। निग्रंथ है नीराग है निशल्य है निर्दोष है। निर्मान-मद यह आतमा निष्काम है निष्क्रोध है।। भगवान आत्मा परिग्रह से रहित है, राग से रहित है, माया, मिथ्यात्व और निदान शल्यों से रहित है, सर्व दोषों से मुक्त है, काम-क्रोध रहित है और मद-मान से भी रहित है। (६४) णिइंडो णिहंदो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो । णीरागो णिद्दोसो णिम्मूढो णिब्भयो अप्पा ।। निर्दण्ड है निर्द्वन्द्व है यह निरालम्बी आतमा । निर्देह है निर्मूढ है निर्भयी निर्मम आतमा ।। भगवान आत्मा हिंसादि पापों रूप दण्ड से रहित है, मानसिक द्वन्द्वों से रहित है, ममत्व परिणाम से रहित है, शरीर से रहित है, आलम्बन से रहित है, राग से रहित है, द्वेष से रहित है, मूढ़ता और भय से भी रहित है। (६६) णियभावं णवि मुच्चड़ परभावं णेव गेण्हए केइ । जाणदि पस्सदि सव्वं सो हं इदि चिंतए णाणी ।। ज्ञानी विचारे देखे-जाने जो सभी को मैं वही । जो ना ग्रहे परभाव को निजभाव को छोड़े नहीं ।। ज्ञानी ऐसा चिन्तवन करते हैं कि मैं तो वह हूँ, जो निजभाव को कभी छोड़ता नहीं है, परभाव को ग्रहण नहीं करता है और सबको जानता-देखता है। (६७) जारिसिया सिद्धप्पा भवमल्लिय जीव तारिसा होति । जरमरणजम्ममुक्का अट्ठगुणालंकिया जेण ।। गुण आठ से हैं अलंकृत अर जन्म मरण जरा नहीं। हैं सिद्ध जैसे जीव त्यों भवलीन संसारी वही ।। जिसप्रकार सिद्ध भगवान जन्म-जरा-मृत्यु से रहित और आठ गुणों से अलंकृत हैं, उसीप्रकार भवलीन संसारी जीव भी जन्म-जरा-मृत्यु से रहित एवं आठ गुणों से अलंकृत हैं। (६८) असरीरा अविणासा अणिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा । जह लोयग्गे सिद्धा तह जीवा संसिदी णेया ।। शुद्ध अविनाशी अतीन्द्रिय अदेह निर्मल सिद्ध ज्यों । लोकाग्र में जैसे विराजे जीव हैं भवलीन त्यों ।। जिसप्रकार लोकाग्र में सिद्धभगवान अशरीरी, अविनाशी, अतीन्द्रिय, निर्मल और विशुद्धात्मा रूप से विराजमान हैं; उसीप्रकार सभी संसारी जीवों को भी अशरीरी, अविनाशी, अतीन्द्रिय निर्मल एवं विशुद्धात्मा जानना चाहिए। केवलणाणसहायो केवलदंसणसहावसुहमइओ। केवलसत्तिसहावो सो हं इदि चिंतए णाणी ।। ज्ञानी विचारे इसतरह यह चिन्तवन उनका सदा । केवल्यदर्शन ज्ञान सुख शक्तिस्वभावी हूँ सदा ।। ज्ञानी ऐसा चिन्तवन करते हैं कि मैं तो वह हूँ, जो केवलज्ञानस्वभावी है, केवलदर्शनस्वभावी है, सुखमय और केवलशक्तिस्वभावी है। ६४. नियमसार गाथा ४३ 12 ६७. नियमसार गाथा ४७ ६३. नियमसार गाथा ४४ ६५. नियमसार गाथा ९६ ६६. नियमसार गाथा ९७ ६८. नियमसार गाथा ४८
SR No.008380
Book TitleShuddhatma shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size66 KB
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