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________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक (६०) एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि । एदेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सोक्खं ।। इस ज्ञान में ही रत रहो सन्तुष्ट नित इसमें रहो। बस तृप्त भी इसमें रहो तो परमसुख को प्राप्त हो ।। हे भव्यजन! तुम इस ज्ञान में रत रहो, इसमें ही नित्य सन्तुष्ट रहो और इसमें ही तृप्त रहो; तुम्हें उत्तम सुख की अवश्य प्राप्ति होगी। जम्हा जाणदि णिच्चं तम्हा जीवो दु जाणगो णाणी। णाणं च जाणयादो अव्वदिरित्तं मुणेयव्वं ।। नित्य जाने जीव बस इसलिए ज्ञायकभाव है। है ज्ञान अव्यतिरिक्त ज्ञायकभाव से यह जानना ।। चूँकि जीव निरन्तर जानता है, अतः यह ज्ञायक आत्मा ज्ञानी है और ज्ञान ज्ञायक से अव्यतिरिक्त है, अभिन्न हैं; - ऐसा जानना चाहिए। (५८) णाणं सम्मादिटुिंदु सुत्तमंगपुव्वगयं । धम्माधम्मं च तहा पव्वज्जं अब्भुवंति बुहा ।। ज्ञान ही समदृष्टि संयम सूत्र पूर्वगतांग भी। सधर्म और अधर्म दीक्षा ज्ञान हैं - यह बुध कहें ।। ज्ञानीजन ज्ञान को ही सम्यग्दृष्टि (सम्यग्दर्शन) ज्ञान को ही संयम, ज्ञान को ही अंगपूर्वगत सूत्र एवं ज्ञान को ही धर्म-अधर्म तथा दीक्षा मानते हैं। (६१) परमट्ठो खलु समओ सुद्धो जो केवली मुणी णाणी। तम्हि ट्ठिदा सहावे मुणिणो पावंति णिव्वाणं ।। परमार्थ है है ज्ञानमय है समय शुध मुनि केवली। इसमें रहें थिर अचल जो निर्वाण पावें वे मुनी ।। निश्चय से जो परमार्थ है, समय है, शुद्ध है, केवली है, मुनि है, ज्ञानी है; उस आत्मा के स्वभाव में स्थित मुनि ही निर्वाण को प्राप्त करते हैं। (६२) आदा खु मज्झ णाणं आदा मे दंसणं चरित्तं च । आदा पच्चक्खाणं आदा मे संवरो जोगो ।। निज आतमा ही ज्ञान है दर्शन चरित भी आतमा । अर योग संवर और प्रत्याख्यान भी है आतमा ।। निश्चय से मेरा आत्मा ही ज्ञान है, मेरा आत्मा ही दर्शन और चारित्र है, मेरा आत्मा ही प्रत्याख्यान है और मेरा आत्मा ही संवर और योग हैं। णाणगुणेण विहीणा एवं तु पदं बहु वि ण लहंते । तं गिण्ह णियदमेदं जदि इच्छसि कम्मपरिमोक्खं ।। इस ज्ञानगुण के बिना जन प्राप्ती न शिवपद की करें । यदि चाहते हो मुक्त होना ज्ञान का आश्रय करो ।। ज्ञानगुण से रहित जन अनेक प्रकार के कर्मों के करते हुए भी इस ज्ञानस्वरूप पद को प्राप्त नहीं करते। इसलिए हे भव्यजन! यदि तुम कर्मों से सर्वथा मुक्ति चाहते हो तो नियत इस ज्ञान गुण को ही ग्रहण करो। ५८.समयसार गाथा ४०३ ६१. समयसार गाथा १५१ ५७. समयसार गाथा ४०२ ५९. समयसार गाथा २०५ ६०. समयसार गाथा २०६ ६२.समयसार गाथा २७७
SR No.008380
Book TitleShuddhatma shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size66 KB
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