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________________ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - r - - - - - -- - - - - -- - - क्या लाभ है ऐसे अनल्प विकल्पों के जाल से। बस एक ही है बात यह परमार्थ का अनुभव करो।। क्योंकि निजरसभरित परमानन्द के आधार से। कुछ भी नहीं है अधिक सुनलोइस समय के सार से ।।२४४।। (दोहा) ज्ञानानन्दस्वभाव को करता हआ प्रत्यक्ष । अरे पूर्ण अब हो रहा यह अक्षय जगचक्षु ।।२४५।। इसप्रकार यह आतमा अचल अबाधित एक। ज्ञानमात्र निश्चित हुआ जो अखण्ड स्वसंवेद्य ।।२४६ ।। - (हरिगीत) दृगज्ञानमय वृत्त्यात्मक यह एक ही है मोक्षपथ । थित रहें अनुभव करें अर ध्यावें अहिर्निश जो पुरुष ।। जो अन्य को न छुयें अर निज में विहार करें सतत । वे पुरुष ही अतिशीघ्र ही समैसार को पावे उदित ।।२४० ।। जो पुरुष तज पूर्वोक्त पथ व्यवहार में वर्तन करें। तर जायेंगे यह मानकर द्रव्यलिंग में ममता धरें।। वे नहीं देखें आत्मा निज अमल एक उद्योतमय । अर अखण्डअभेद चिन्मय अज अतुल आलोकमय ।।२४१।। - -- - - - - - - - -- - - - - -- - - - - - - (१२०) - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - --- - -- - -- तुष माँहि मोहित जगतजन ज्यों एक तुष ही जानते । वे मूढ तुष संग्रह करें तन्दुल नहीं पहिचानते ।। व्यवहारमोहित मूढ़ त्यों व्यवहार को ही जानते । आनन्दमय सद्ज्ञानमय परमार्थ नहीं पहिचानते ।।२४२ ।। यद्यपी परद्रव्य हैं द्रवलिंग फिर भी अजज्ञन । बस उसी में ममता धरें द्रवलिंग मोहित अन्धजन ।। देखें नहीं जाने नहीं सुखमय समय के सार को। बस इसलिए ही अज्ञजन पाते नहीं भवपार को ।।२४३।। परिशिष्ट (कुण्डलिया) यद्यपि सब कुछ आ गया कुछ भी रहा न शेष । फिर भी इस परिशिष्ट में सहज प्रमेयविशेष ।। सहज प्रमेय विशेष उपायोपेय भावमय। ज्ञानमात्र आतम समझाते स्याद्वाद से ।। परमव्यवस्था वस्तुतत्त्व की प्रस्तुत करके। परमज्ञानमय परमातम का चिन्तन करते ।।२४७।। -- --- - -- -- - -- - ______(११९)_______ ___ (१२१)______ L- - - - - - - - - - -
SR No.008378
Book TitleSamaysara kalash Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2002
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size228 KB
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