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समाधि और सल्लेखना
ऐसे साधकों को शेर (सियार) फाड़ते रहे, तथापि वे श्रेष्ठ रत्नत्रय की साधना करते रहे, शिथिल नहीं हुए ऐसे ही कुछ धीरधारक सल्लेखना में सफल होनेवाले उपसर्गजयी मुनिराजों के प्रातः स्मरणीय उल्लेखनीय नाम इसप्रकार है -
• नवदीक्षित सुकुमाल मुनि को स्यालनी और उसके बच्चों द्वारा लगातार तीन रात तक भक्षण किये जाने पर जिनके शरीर में घोर वेदना उत्पन्न हुई, फिर भी वे ध्यान द्वारा आराधना को प्राप्त हुए ।
• उपसर्गजयी सुकौशल मुनि को उनकी माता ने शेरनी बनकर उनका भक्षण किया, तथापि वे उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए । • सिर पर अग्नि से तप्तायमान धधकती सिगड़ी जलने पर भी देहोत्सर्ग करके गजकुमार मुनि उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए।
• एणिक पुत्र नामक साधु ने गंगा नदी के प्रवाह में बहते हुए भी निर्मोहरूप से चार आराधना प्राप्त करके समाधिमरण किया, परन्तु कायरता नहीं की; इसलिए हे कल्याण के अर्थी साधु! तुम्हें भी धैर्य धारण करके आत्महित में सावधान रहना उचित है ।
• भद्रबाहु मुनिराज घोर क्षुधा वेदना से पीड़ित होने पर भी संक्लेशरहित बुद्धि का अवलम्बन करते हुए, अल्पाहार नामक तप को धारण करके उत्तम स्थान को प्राप्त हुए, परन्तु भोजन की इच्छा नहीं की।
• कौशाम्बी नगरी में ललितघटादि बत्तीस प्रसिद्ध महामुनि, नदी के प्रवाह में डूबने पर भी निर्मोहरूप से प्रायोपगमन संन्यास को धारण करके आराधना को प्राप्त हुए।
• चम्पानगरी के बाहर गंगा के किनारे धर्मघोष नामक महामुनि एक मास का उपवास धारण करके असह्य तृषा की वेदना होने पर भी संक्लेशरहित उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए, आराधनासहित समाधिमरण किया, तृषा की वेदना से पानी की इच्छा नहीं की, संयम से नहीं डिगे;
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समाधि और सल्लेखना
बल्कि धैर्य धारण करके आत्मकल्याण किया।
• श्रीदत्त मुनि को पूर्वजन्म के वैरी देव ने विक्रिया द्वारा घोर शीतवेदना की, तथापि वे संक्लेश किये बिना उत्तमस्थान को प्राप्त हुए ।
वृषभसेन नामक मुनि, उष्ण वायु, उष्ण शिलातल तथा सूर्य का तीव्र आतप संक्लेशरहित होकर सहन करके उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए।
• रोहेडग नगरी में अग्निपुत्र नामक मुनि का क्रौंच नामक शत्रु ने शक्ति- आयुध द्वारा घात कर दिया, तथापि उस वेदना को समतापूर्वक सहन करके, वे उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए ।
• चण्डवेग नामक शत्रु ने काकंदी नगरी में अभयघोष मुनि के सर्व अंग छेद डाले; उस घोर वेदना को पाकर भी वे उत्तम अर्थस्वरूप अभेद रत्नत्रय को प्राप्त हुए।
विद्युत्चर मुनि, डाँस-मच्छर द्वारा भक्षण की अतिघोर वेदना को संक्लेशरहित होकर सहन करके उत्तम अर्थरूप आत्मकल्याण को प्राप्त हुए ।
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हस्तिनापुर के गुरुदत्त मुनि, द्रोणागिरि पर्वत पर, हण्डी के पकते अनाज की भाँति दग्ध होने पर भी उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए ।
• चिलातपुत्र नामक मुनि को किसी पूर्वभव के शत्रु ने तीक्ष्ण आयुध द्वारा घाव कर दिया, उस घाव में बड़े-बड़े कीड़े पड़ गये और उन कीड़ों से उनका शरीर चलनी की भाँति बिंध गया; तथापि वे संक्लेशरहित समताभाव से वेदना सहन करके उत्तमार्थ को प्राप्त हुए ।
• यमुनावक्र के तीक्ष्ण बाणों द्वारा जिनका शरीर छिद गया है ऐसे दण्ड मुनिराज, घोर वेदना को भी समभाव से सहन करके उत्तमार्थरूप