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________________ । था। अब उन वृक्षों की प्रभा भी क्षीण हो गयी है, इसलिए स्पष्ट दिखायी देने लगे हैं। आज से लेकर सूर्य, चन्द्रमा, तारे आदि उदय और अस्त होते रहेंगे और उनसे रात-दिन का विभाग होता रहेगा। उन बुद्धिमान ला | सन्मति ने सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, ग्रहों का एक राशि से दूसरी राशि पर जाना, दिन और अयन आदि का संक्रमण बतलाते हुए ज्योतिष विद्या के मूल कारणों का भी उल्लेख किया था। वे आर्य लोग भी उनके वचन सुनकर शीघ्र ही भयरहित हो गये और पूजा करके अपने-अपने स्थानों पर चले गये। | इनके बाद असंख्यात करोड़ वर्ष का अन्तराल काल बीत जाने पर इस भरतक्षेत्र में क्षेमंकर नामक तीसरे मनु हुए। इस महाप्रतापी मनु की आयु असंख्यात वर्ष बराबर थी और शरीर की ऊँचाई आठ सौ धनुष थी। पहले जो पशु, सिंह, व्याघ्र आदि अत्यन्त भद्रपरिणामी थे, जिनका लालन-पालन प्रजा अपने हाथ से ही किया करती थी, वे अब तीसरे कुलकर क्षेमंकर के समय विकार को प्राप्त होने लगे-मुँह फाड़ने लगे और भयंकर शब्द करने लगे। उनकी इस भयंकर गर्जना से मिले हुए विकार भाव को देखकर प्रजाजन डरने लगे तथा बिना किसी आश्रय के निश्चल बैठे हुए क्षेमंकर कुलकर (मनु) के पास जाकर उनसे पूछने लगे- हे देव ! सिंह, व्याघ्र आदि जो पशु पहले बड़े शान्त थे, जो अत्यन्त स्वादिष्ट घास खाकर और तालाबों का रसायन के समान रसीला पानी पीकर पुष्ट हुए थे, जिन्हें हम लोग अपनी गोदी में बैठाकर अपने हाथों से खिलाते थे, हम जिन पर अत्यन्त विश्वास करते थे और जो बिना किसी उपद्रव के हम लोगों के साथसाथ रहा करते थे, आज वे ही पशु बिना किसी कारण के हम लोगों को सींगों से मारते हैं, दाढ़ों और नखों से हमारा विदारण करना चाहते हैं और अत्यन्त भयंकर दीख पड़ते हैं। हे महाभाग, आप इनसे हमारी सुरक्षा का कोई उपाय बतलाइए। चूँकि आप सकल संसार का क्षेम-कल्याण सोचते रहते हैं इसलिए सच्चे क्षेमंकर हैं। इसप्रकार उन आर्यों के वचन सुनकर क्षेमंकर कुलकर (मनु) को भी उनसे मित्रभाव उत्पन्न हो गया और वे कहने लगे कि "आपका कहना ठीक है। ये पशु पहले वास्तव में शान्त थे, परन्तु अब भयंकर हो गये हैं, इसलिए इन्हें छोड़ देना चाहिए। ये काल के दोष से विकार को प्राप्त हुए हैं। अब इनका विश्वास नहीं करना चाहिए। यदि तुम इनकी उपेक्षा करोगे तो ये अवश्य ही बाधा करेंगे।" A369.48 Goa
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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