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। उससमय वहाँ प्रतिश्रुति नाम से प्रसिद्ध पहले कुलकर विद्यमान थे, जो कि सबसे अधिक तेजस्वी थे। | उनकी आयु पल्य के दसवें भाग के बराबर और ऊँचाई एक हजार आठ सौ धनुष थी। पहले कभी नहीं देखे
गये सूर्य व चन्द्रमा को देखकर भयभीत हुए भोगभूमिज मनुष्यों का स्वरूप निम्न प्रकार बताकर निर्भय किया। | उन्होंने कहा - "हे भद्र पुरुषो, तुम्हें जो ये दिख रहे हैं, वे सूर्य, चन्द्रमा नाम के ग्रह हैं, ये महाकान्ति | के धारक हैं तथा आकाश में सर्वदा घूमते रहते हैं। अभीतक इनका प्रकाश ज्योतिरङ्ग जाति के कल्पवृक्षों
के प्रकाश से तिरोहित रहता था इसलिए नहीं दिखते थे, परन्तु अब चूँकि कालदोष के वश से ज्योतिरङ्ग वृक्षों का प्रभाव कम हो गया है, अत: दिखने लगे हैं। इनसे तुम लोगों को कोई भय नहीं है, अत: भयभीत नहीं होओ।" प्रतिश्रुति कुलकर ने इस भरतक्षेत्र में होनेवाली व्यवस्थाओं का निरूपण किया। वे सब आर्य उनकी आज्ञानुसार अपनी-अपनी स्त्रियों के साथ अपने-अपने घर चले गये। - इसके बाद क्रम-क्रम से समय के व्यतीत होने तथा प्रतिश्रुति कुलकर के स्वर्गवास हो जाने पर जब असंख्यात करोड़ वर्षों का मन्वन्तर (एक कुलकर के बाद दूसरे कुलकर के उत्पन्न होने तक बीच का काल) व्यतीत हो गया तब समीचीन बुद्धि के धारक सन्मति नाम के द्वितीय कुलकर का जन्म हुआ। उनकी आयु संख्यात वर्षों की थी और शरीर की ऊँचाई एक हजार तीन सौ धनुष थी। इनके समय में ज्योतिरङ्ग जाति के कल्पवृक्षों की प्रभा बहुत ही मन्द पड़ गयी थी तथा उनका तेज बुझते हुए दीपक के समान नष्ट होने के सन्मुख ही था। एक दिन रात्रि के प्रारम्भ में जब थोड़ा-थोड़ा अन्धकार था तब तारागण आकाशरूपी आंगन में सब ओर प्रकाशमान होने लगे। उससमय अकस्मात तारों को देखकर भोगभूमिज मनुष्य भ्रम में पड़कर भयभीत हो गये। वे सब समाधान के लिए सन्मति कुलकर के पास गये।
सन्मति कुलकर ने क्षणभर विचार कर उन आर्य पुरुषों से कहा कि - "हे भद्र पुरुषो ! यह कोई उत्पात नहीं है इसलिए आप व्यर्थ ही भय के वशीभूत न हों। ये तारे हैं, यह नक्षत्रों का समूह है, ये सदा प्रकाशमान रहनेवाले सूर्य, चन्द्र आदि ग्रह हैं और यह तारों से भरा हुआ आकाश है। यह ज्योतिश्चक्र सर्वदा आकाश में विद्यमान रहता है, अब से पहले भी विद्यमान था, परन्तु ज्योतिरङ्ग जाति के वृक्षों के प्रकाश से तिरोभूत
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