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________________ २५. श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारक मुनिराज पूजन (विधाता) समिति आदाननिक्षेपण पालते वीतरागी मुनि। कमंडल शास्त्र पीछी को उठाते और धरते मुनि ।।१।। यत्न से ग्रहण करते हैं यत्न से ही इन्हें धरते । प्रमाद रहित होकर के क्रिया सम्यक् सहज करते ।।२।। भावपूर्वक करूँ पूजन समिति आदाननिक्षेपण। पूर्ण संयम हृदय धारूँ करूँ शुद्धात्म का चिन्तन ।।३।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीआदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराज अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीआदाननिक्षेपणसमितिधारकमनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीआदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराज अत्र मम सन्निहितो भवभववषट्। (विधाता) ज्ञानमय भावना वाला स्वजल प्रभु शीघ्र लाऊँगा। आपके चरण में अर्पित करूँगा दुःख मिटाऊँगा ।। सदा पालूँ प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण । उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।१।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना चंदन हृदय में प्रभु सजाऊँगा। ताप संसार का हर कर हृदय शीतल बनाऊँगा ।। सदा पालूँ प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण । उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।२।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना अक्षत गुणमयी शीघ्र लाऊँगा। प्राप्त अक्षय स्वपद करने भवोदधि पार जाऊँगा।। श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारक मुनिराज पूजन सदा पालू प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण । उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।३।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय अक्षयप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना के पुष्प सुरभित शीघ्र लाऊँगा। काम की पीर क्षय करके शीलगण नाथ पाऊँगा।। सदा पालू प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण। उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।४।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना नैवेद्य स्वानुभवमयी लाऊँगा। क्षुधा की आग नाचूँगा तृप्त पद शीघ्र पाऊँगा ।। सदा पालूँ प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण । उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।५।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना दीपक ज्योतिमय शीघ्र लाऊँगा। मोहमद नाश केवलज्ञान की विधि नाथ पाऊँगा।। सदा पालूँ प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण । उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।६।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय मोहाधकारविनाशनाशय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना की धुप उर में देव लाऊँगा। धर्म अरु शुक्लध्यानी बन कर्म आठों नशाऊँगा।। सदा पालूँ प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण । उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।७।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय अष्टकर्मदहनायधूपं निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञानमय भावना के फल चरण सविनय चढ़ाऊँगा। मुक्तिफल प्राप्त करने को चरण आगे बढ़ाऊँगा ।। सदा पालूँ प्रभो सम्यक् समिति आदाननिक्षेपण। उठाऊँ या धरूँ वस्तु प्रमादों से रहित उस क्षण ।।८।। ॐ ह्रीं श्री आदाननिक्षेपणसमितिधारकमुनिराजाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानमय भावना के अर्घ्य अनुपम शीघ्र लाऊँगा। स्वपद पाऊँ अनर्घ्य अपना यही विधि नाथ पाऊँगा ।।
SR No.008373
Book TitleRatnatray mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2005
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size280 KB
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